Wednesday 27 January, 2016

यूपी सीआइसी जावेद उस्मानी की बढ़ सकतीं हैं मुश्किलें : यूपी सीआइसी जावेद उस्मानी के खिलाफ झूंठ बोलने और धोखाधड़ी करने की एफआईआर की माँग l




लखनऊ/27 जनवरी 2016/ यूपी में सूचना आयुक्तों और आरटीआई एक्टिविस्टों के बीच खिंची तलवारें म्यान में बापस जाते दिखाई नहीं दे रहीं हैं l बीते 11 जनवरी को राज्यपाल से मिलकर सूचना आयुक्तों की अक्षमता और सूचना आयोग परिसर में सूचना आयुक्तों के द्वारा आरटीआई आवेदकों के उत्पीडन के आरोपों की शिकायतें अभी राजभवन पंहुचीं ही थीं कि आरटीआई आवेदकों ने नयी आरटीआई नियमावली पर सूचना आयुक्तों को घेरना शुरू कर दिया था l अब एक ताजा घटनाक्रम के तहत लखनऊ की एक आरटीआई कार्यकत्री ने लखनऊ के एक हिंदी दैनिक में छपे एक इंटरव्यू को आधार बनाकर यूपी के मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी पर जानबूझकर झूंठ बोलने और धोखाधड़ी करने का आरोप लगाते हुए थाना हजरतगंज के थानाध्यक्ष को तहरीर भेजकर उस्मानी के खिलाफ एफआईआर की माँग की है l  

  
लखनऊ स्थित सामाजिक संगठन येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव और आरटीआई कार्यकत्री उर्वशी शर्मा ने बताया कि उत्तर प्रदेश के निवर्तमान मुख्य सचिव और वर्तमान मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी ने दैनिक जागरण को एक इंटरव्यू दिया था जो दैनिक जागरण के लखनऊ संस्करण के पेज 24 पर दिनांक 24 जनवरी 2016 में प्रकाशित हुआ था l बकौल उर्वशी इस सार्वजनिक साक्षात्कार द्वारा उस्मानी ने कई ऐसी बातें कहीं जो लोकसेवक के स्तर से कहे जाने पर आईपीसी के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में आती हैं l उर्वशी ने बताया कि उस्मानी ने आरटीआई के तहत दंड बसूली और मुख्य सचिव के स्तर पर बनी अनुश्रवण समिति के सम्बन्ध में पूर्व में लागू आधा दर्जन शासनादेशों  को धता-बताकर विधि एवं व्यवस्था के प्रतिकूल नितांत झूंठा वक्तव्य दिया और इस प्रकार पूरे उत्तर प्रदेश की जनता को गुमराह कर धोखाधड़ी करने का संज्ञेय अपराध कारित किया l बकौल उर्वशी हालाँकि इन मामलों में इन शासनादेशों द्वारा ये व्यवस्थाएं व्यवस्था नयी आरटीआई नियमावली से पहले से ही लागू हैं पर जावेद उस्मानी ने इस सार्वजनिक इंटरव्यू द्वारा जानबूझकर ऐसा असत्य कथन किया गोया कि ये व्यवस्थाएं पहले से लागू ही नहीं थी और यह व्यवस्थाएं इस नहीं नियमावली के आने के बाद ही लागू हुईं हैं जिनसे अब बदलाव आएगा और इस प्रकार पूरे उत्तर प्रदेश की जनता को गुमराह कर उसके  साथ धोखाधड़ी करने का संज्ञेय अपराध कारित किया है l

  
   उर्वशी ने बताया कि उत्तर प्रदेश की सजग नागरिक होने के नाते उन्होंने बीते 25 जनवरी को लखनऊ के थाना हजरतगंज के थानाध्यक्ष को एक प्रार्थनापत्र तहरीर देकर  जावेद उस्मानी के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर उस्मानी के खिलाफ विधिक कार्यवाही करने का अनुरोध किया है l उर्वशी ने बताया कि थाने से पीली पर्ची या पावती न मिलने के कारण वे आज इस पत्र की प्रति स्पीड पोस्ट से भी थाने को भेज रहीं हैं l


 उर्वशी ने बताया कि यदि थानाध्यक्ष द्वारा इस संज्ञेय अपराध की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं की गयी तो वे सीआरपीसी के प्राविधानों के अंतर्गत अग्रिम कार्यवाही करेंगी l

Sunday 24 January, 2016

आरटीआई कार्यकत्री उर्वशी शर्मा का नयी आरटीआई नियमावली पर उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी के नाम खुला पत्र l



या तो महामूर्ख या महाधूर्त और स्वार्थी हैं आरटीआई विरोधी उत्तर प्रदेश सरकार के चाटुकार मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी.


जी हाँ और मैं चाहूंगी कि मेरे ये विचार उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी तक अवश्य पंहुचें और वे शर्म करते हुए या तो अपने पद से इस्तीफा दे दें अन्यथा अपने पद की गरिमा बनाए रखने  को मेरे ऊपर मानहानि का वाद अवश्य दायर कर दें.नहीं तो मैं यही कहूंगी कि उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी निहायत ही स्वार्थी और बेशर्म इंसान हैं.


मुझे जावेद उस्मानी के वारे में ये टिप्पणी मजबूरी में अत्यन्त भारी मन से इसलिए करनी पड़ रही है क्योंकि जावेद उस्मानी ने दैनिक जागरण लखनऊ के उप मुख्य संवाददाता अमित मिश्र को दिए और दैनिक जागरण के लखनऊ संस्करण में पेज 24 पर आज प्रकाशित  एक साक्षात्कार( वेबलिंक  http://epaper.jagran.com/epaperimages/24012016/lucknow/23lko-pg24-0.pdf  और http://epaper.jagran.com/ePaperArticle/24-jan-2016-edition-Lucknow-page_24-20781-2480-11.html पर उपलब्ध ) में न केवल आरटीआई के वारे में अपनी अज्ञानता जाहिर की है अपितु यूपी में आरटीआई का संरक्षक होने पर भी इस संरक्षक की भूमिका से इतर सत्ता की चाटुकारिता करते हुए अपने कुतर्कों द्वारा यूपी सरकार द्वारा बनायी गयी नयी नियमावली के आरटीआई को कमजोर करने वाले,आरटीआई कार्यकर्ताओं को खतरा बढाने वाले और सूचना आयोग में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले प्राविधानों का अंधा समर्थन कर आरटीआई विरोधी कार्य किया है.  

जावेद उस्मानी ने राज्य सरकार को नियम बनाने का अधिकार होने की तो बात की किन्तु  अधिनियम की धारा 4(4) के अधीन प्रसारित की जाने वाली सामग्रियों की लागत या प्रिंट लागत मूल्य;धारा 6(1) के अधीन संदेय फीस; धारा 7(1) और 7(5) के अधीन संदेय फीस; धारा 13(6) और 16(6) के अधीन अधिकारियों,कर्मचारियों के वेतन,भत्ते,सेवा के निबंधन,शर्तें आदि; धारा 19(10) के अधीन अपीलों के विनिश्चय में सूचना आयोगों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया से ही सम्बंधित नियम बना सकने और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा  अधिनियम की धारा 27 का अतिक्रमण करके अनेकों गैरकानूनी प्राविधान करके उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार अधिनियम नियमावली 2015 बनाने का जिक्र नहीं किया. आखिर क्यों ?


जावेद उस्मानी का यह कहना सफेद झूंठ है कि जनसूचना अधिकारियों द्वारा आरटीआई आवेदकों को सहायता पंहुचाने की बात कही जा रही है क्योंकि इस नियमावली द्वारा जनसूचना अधिकारियों द्वारा आरटीआई आवेदकों को सहायता पंहुचाने वाली आरटीआई एक्ट की धारा 5(3) , 6(1) के परंतुक और 7(4) को पूर्णतया निष्प्रभावी बना दिया गया है.


जावेद उस्मानी ने स्वयं को अत्यधिक नीचे गिराकर सफेद झूंठ बोला है कि अब तक अर्थदंड की बसूली की मानीटरिंग की कोई व्यवस्था नहीं थी और अब हर तीन माह पर इन मामलों की समीक्षा की व्यवस्था की गयी है. सत्यता तो यह है कि हमारे प्रयासों से लागू कराई गयी सूबे के मुख्य सचिव की जिम्मेदारी वाली यह व्यवस्था साल 2008 से ही लागू है http://adminreform.up.nic.in/go/go10.pdf हाँ  यह और बात है कि सता के चाटुकार उस्मानी मुख्य सचिव के रूप में भी इस जिम्मेवारी से मुंह छुपाते रहे और अब मुख्य सूचना आयुक्त बनने के बाद तो इतना नीचे गिर गए हैं कि सफेद झूंठ तक बोल रहे हैं.  


जावेद उस्मानी का यह कथन सत्य नहीं है कि सूचना आयुक्त मामलों को विधिक रूप से निस्तारित कर रहे हैं. सत्यता यह है कि वर्तमान सूचना आयुक्तों द्वारा एक भी मामले में अधिनियम की धारा 4(1)(d) के अनुसार निस्तारण नहीं हो रहा है. सूचना आयुक्त अपने फैसलों में अपने विवेक का कोई इस्तेमाल कर ही नहीं रहे हैं और यांत्रिक रीति से आयोग न आने वाले आरटीआई आवेदकों के सभी मामलों को बिना सूचना दिलाये काल्पनिक आधारों पर निस्तारित करके  पेंडेंसी कम करने की क्षद्म बात कहकर गुमराह कर रहे  है. हम सूचना आयुक्तों के निर्णयों पर इस सन्दर्भ में बहस को तैयार हैं.




जावेद उस्मानी का यह कथन सत्य नहीं है कि सूचना आयुक्त पूरी तत्परता से कार्य कर रहे हैं. सच्चाई यह है कि सूचना आयुक्त पूरे समय सुनवाई कर ही नहीं रहे है और आयोग में आरटीआई आवेदकों का घोर उत्पीडन हो रहा है. अधिकांश आयुक्त एक्ट के सन्दर्भ में अज्ञानी हैं और इनको ट्रेनिंग की आवश्यकता है. आयुक्त सरकार के एजेंट की तरह काम कर रहे है और विभाग परिवर्तित न होने के चलते  मठाधीश बन जमकर भ्रष्ट आचरण कर रहे हैं.


हम आरटीआई एक्टिविस्टों के बजूद को नकारकर उस्मानी ने हमारे प्रति अपना पूर्वाग्रह,दुराग्रह और अपनी अज्ञानता जाहिर की है. खेद है कि उस्मानी को नहीं पता है कि भारत सरकार आरटीआई का कोर्स चलाता है और मैं स्वयं भी कार्मिक और प्रशिक्षण मंत्रालय के इस ऑनलाइन कोर्स में शत-प्रतिशत अंक प्राप्त कर ‘A’  ग्रेड पा चुकी हूँ. यही नहीं दिल्ली में भारत सरकार द्वारा आयोजित सूचना आयुक्तों के सम्मलेन में आरटीआई एक्टिविस्टों को भी बुलाया जाता है वह बात और है कि कभी कभी विरोध जताकर हम एक्टिविस्ट विरोधस्वरूप वहां जाने से मना कर देते हैं. यही नहीं, भारत सरकार ने यूपी सरकार को आरटीआई एक्टिविस्टों की सूची बनाने और उनकी सुरक्षा करने के भी निर्देश दिए है अलबत्ता उस्मानी मुख्य सचिव रहते भी आरटीआई एक्टिविस्टों की अनदेखी करते रहे और अब मुख्य सूचना आयुक्त बनने के बाद भी कर रहे हैं.उस्मानी अपना सामान्य ज्ञान बढ़ायें अन्यथा मुझे कहना पड़ेगा कि इस मूर्ख को किसने मुख्य सूचना आयुक्त बना दिया है.


उस्मानी को या अब तक आरटीआई एक्ट और कानून की समझ नहीं है या वे सत्ता की चाटुकारिता में जबरदस्त रूप से मदमस्त हैं तभी तो पीआईओ को बिना सुने लगाये गए जुर्माने को प्रक्रिया की कमी बता रहे है और दंड के आदेश को पलटने की बकालत कर रहे हैं. गौरतलब है कि आरटीआई एक्ट की धारा 20(1) के परंतुक के अनुसार पीआइओ पर दंड सुनवाई का युक्तयुक्त  अवसर देने के बाद ही लगाया जाता है और एक्ट में दंड बापसी का कोई भी प्राविधान नहीं है.राज्य लोक सूचना अधिकारी की अर्जी पर आयोग द्वारा पारित दण्डादेश को बापस लेना अधिनियम की धारा 19(7) और 23 के प्रतिकूल होने के साथ साथ इस स्थापित विधि के भी प्रतिकूल है कि  विधायिका द्वारा स्पष्ट अधिकार दिए बिना किसी भी न्यायिक,अर्द्ध-न्यायिक या प्रशासकीय संस्था को अपने ही आदेश का रिव्यु करना या उसे बदलना अवैध होता है lउत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग भी एक प्रशासकीय संस्था है और इस स्थापित विधि के अनुसार इसके द्वारा अपने आदेश को बदलना गैर-कानूनी है l इस नियम की ओट में सूचना आयुक्तों द्वारा लोक सूचना प्राधिकारियों के दंड के आदेशों को बापस लिया जायेगा जिसके कारण एक्ट की धारा 20 निष्प्रभावी हो जायेगी और सूचना आयोग में धीरे-धीरे भ्रष्टाचार की व्यवस्था भी पुष्ट होती जायेगी l







हालाँकि आरटीआई एक्ट सूचना सार्वजनिक करने का एक्ट है न कि सूचना छुपाने का और अधिनियम की धारा 4(1)(b) भी सूचना को स्वतः सार्वजनिक किये जाने पर जोर देती है पर उस्मानी द्वारा आरटीआई एक्टिविस्टों की मौतों पर सूचना सार्वजनिक करने को आचित्यहीन करार देने और आरटीआई एक्टिविस्टों की मौतों की हमारी आशंका को काल्पनिक बताने से सिद्ध हो रहा है कि जावेद उस्मानी आरटीआई एक्टिविस्टों की लाशों पर अपने स्वार्थों की सेज सजाने को तत्पर एक निहायत ही घटिया इंसान हैं जिनकी जितनी भी भर्त्सना की जाये वह कम है.  


सरकारी खर्चे पर आने वाले पीआइओ के आग्रह पर सुनवाई स्थगित करने के सरकारी कदम का समर्थन कर उस्मानी ने सिद्ध कर दिया है कि नौकरशाह अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक गिरकर सत्ता की चाटुकारिता करेगा ही करेगा  फिर चाहें वह मामला सूचना आयोग की सुनवाइयों में आने के लिए अपने बच्चों का पेट काटकर पैसे खर्चने वाले गरीब आरटीआई आवेदकों का ही क्यों न हो.


आखिर उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग रूपी लंका के दशानन जो ठहरे ये आयुक्त जो आरटीआई रूपी सीता का बदनीयती से अपहरण कर उसे अपने इशारों पर नचाना चाहते है. पर हम भी राम हैं, यह न भूलें ये दशानन.


उम्मीद कर रही हूँ कि या तो उस्मानी अपना पद छोड़ेंगे या मुझे मानहानि का नोटिस अवश्य भेजेंगे अन्यथा ...................................................................... !

उर्वशी शर्मा
मोबाइल -  9369613513                                                   





  

Sunday 17 January, 2016

समाजसेविका ने यूएनओ,एनएचआरसी समेत दर्जनों से की मुलायम समधी सूचना आयुक्त की शिकायत : बिष्ट को हटाने को जल्द ही दायर होगी पीआईएल



लखनऊ/17 जनवरी 2016/ लगता है यूपी की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह के समधी और सूचना आयुक्त अरविन्द सिंह बिष्ट द्वारा लखनऊ के आरटीआई कार्यकर्ता तनवीर अहमद सिद्दीकी से की गयी मारपीट पर सूचना आयुक्त की मुश्किलें चौतरफा बढ़ने वाली हैं. इस मुद्दे पर एकजुट हो आरपार की लड़ाई लड़ने का मन बना चुके आरटीआई कार्यकर्ता अब सूचना आयुक्त के खिलाफ हर उस दरवाजे को खटखटा रहे हैं जहाँ से उनको न्याय मिलने की उम्मीद है. इसी कड़ी में लखनऊ की एक सामाजिक कार्यकत्री ने सूचना आयुक्त पर आरटीआई कार्यकर्त्ता के मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगाते हुए  बीते शुक्रवार इस मामले को एक एक ई-मेल के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार मामलों के उच्चायुक्त कार्यालय , भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, केन्द्रीय सूचना आयोग, उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग,उत्तर प्रदेश के राज्य मुख्य सूचना आयुक्त, राज्यपाल राम नाईक, सीएम अखिलेश यादव,मुख्य सचिव अलोक रंजन, डीजीपी, लखनऊ के जिलाधिकारी और एसएसपी को भेजकर अरविन्द सिंह बिष्ट के खिलाफ कार्यवाही की मांग की है.

लखनऊ स्थित सामाजिक संगठन येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव,सामाजिक और आरटीआई कार्यकत्री उर्वशी शर्मा ने बताया कि अरविन्द सिंह बिष्ट सूचना आयोग में एक सूचना आयुक्त की तरह नहीं बल्कि एक गुंडे की तरह व्यवहार कर रहे है और इस तरह की गुंडई किसी के भी द्वारा बर्दाश्त नहीं की जायेगी फिर चाहे वह सूबे की सतारूढ़ पार्टी के मुखिया का समधी ही क्यों न हो.

अरविन्द सिंह बिष्ट की पुत्री और मुलायम सिंह यादव के बेटे प्रतीक की पत्नी अपर्णा द्वारा दिव्यांगजनों की सेवा का जिक्र करते हुए उर्वशी ने कहा कि कैसा विरोधाभास है कि जहाँ एक तरफ बेटी दिव्यांगजनों की सेवा में रत है तो वहीं उसी बेटी का बाप अपने सामने आये निरीह आरटीआई आवेदकों को मारपीटकर दिव्यांग बनाने पर आमादा है. उर्वशी ने बताया कि वे समाजसेविका अपर्णा  से मिलकर अपने पिता को नसीहत देने के लिए प्रेरित भी करेंगी. उर्वशी सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव से मिलकर उनको भी अरविन्द सिंह बिष्ट की कारगुजारियों से अवगत कराकर बिष्ट को सुधारने के लिए अपने स्तर पर भी प्रयास करने की बात कहेंगी.

आरटीआई कार्यकर्ताओं को भी मानवाधिकार-संरक्षक बताते हुए उर्वशी ने तनवीर के मामले का पूरा विवरण संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार मामलों के उच्चायुक्त कार्यालय को भेजा है जहाँ से उर्वशी को उनका शिकायती ई-मेल प्राप्त हो जाने की सूचना प्राप्त भी हो गयी है.


उर्वशी ने बताया कि उन्होंने दर्जन भर कार्यालयों को शिकायत भेजकर मामले में शीघ्रता से,गहराई से,पारदर्शी ढंग से,निष्पक्षता से प्रभावी जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करने;भविष्य में तनवीर की सुरक्षा सुनिश्चित करने;तनवीर के साथ ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने; तनवीर की मानहानि के लिए मुआवजा दिलाने;यूपी के सूचना आयोग में सभी आरटीआई कार्यकर्ताओं को सुरक्षित रखते हुए आरटीआई का निर्वाध प्रयोग करने और संविधान के अनुच्छेद 21 और 19 का हनन रोकने के लिए उपाय करने; संयुक्त राष्ट्र संघ के समक्ष भारत द्वारा मानवाधिकार-संरक्षकों के रक्षण के लिए मने गए दिनांक 9 दिसम्बर 1998 के समझौते और विशेषतया इस समझौते के आर्टिकल 1 और 12.2 के अनुसार कार्य करने, उत्तर प्रदेश राज्य मानवाधिकार आयोग द्वारा आरटीआई आवेदकों/ मानवाधिकार-संरक्षकों की शिकायतों को सुनने के लिए विशेष पटल बनाने, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा यूपी के सभी आयोगों के साथ बैठक कर यूपी में किसी भी नागरिक अधिकार के हनन के मामले में आपस में तालमेल कर मामले की शीघ्र सुनवाई कर निर्णय देने को निर्देशित करने; यूपी के सभी लोकसेवकों को मानवाधिकार संरक्षण की अनिवार्य ट्रेनिंग प्रदान करने और मानवाधिकार संरक्षकों का महत्त्व बताने समेत अनेकों मांगें की हैं.


उर्वशी ने बताया है कि वे सूचना आयुक्त अरविन्द सिंह बिष्ट द्वारा प्रताड़ित किये गए दर्जनों  आरटीआई आवेदकों से के संपर्क में हैं और शीघ्र ही अरविन्द सिंह बिष्ट को पदच्युत करने के लिए उच्च न्यायालय में एक पीआईएल भी दायर की जायेगी.

यूपी सूचना आयुक्तों पर अविश्वास : निष्पक्ष और पारदर्शी सुनवाइयों के लिए समाजसेविका उर्वशी ने जावेद उस्मानी से की ऑडियो/वीडियो रिकॉर्डिंग कराने की मांग




लखनऊ / 15 जनवरी 2016 / बीते सोमबार को सूचना आयोग में हुई घटना के सम्बन्ध में यूपी के सूचना आयुक्त अरविन्द सिंह बिष्ट और लखनऊ के आरटीआई कार्यकर्ता तनवीर अहमद सिद्दीकी द्वारा हजरतगंज थाने में एक दूसरे के खिलाफ तहरीर देकर  एक दूसरे पर लगाए आरोप-प्रत्यारोप पर लखनऊ पुलिस अभी जांच ही कर रही है कि इसी बीच लखनऊ के एक सामाजिक संगठन ने उत्तर प्रदेश के राज्य मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी को पत्र लिखकर यूपी के सूचना आयुक्तों पर अविश्वास जताया है और निष्पक्ष और पारदर्शी सुनवाइयों के लिए राज्य सूचना आयोग की सभी सुनवाइयों की ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग कराने की मांग बुलंद की है.  


लखनऊ स्थित सामाजिक संगठन येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव और सामाजिक व आरटीआई कार्यकत्री उर्वशी शर्मा ने बीते मंगलवार स्वयं सूचना आयोग जाकर जावेद उस्मानी के नाम एक पत्र देकर उत्तर प्रदेश के राज्य सूचना आयुक्तों द्वारा आरटीआई आवेदकों को झूंठे मामलों में फंसाए जाने की घटनाओं और सूचना आवेदकों के प्रति पूर्वाग्रही होकर सुनवाईयां करने की बढ़ती घटनाओं के मद्देनज़र सभी सुनवाइयों की ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग की मांग उठायी है.

      

उर्वशी ने बताया कि येश्वर्याज सेवा संस्थान लखनऊ स्थित एक सामाजिक संगठन है जो विगत 15  वर्षों से अनेकों सामाजिक क्षेत्रों के साथ-साथ 'लोकजीवन में पारदर्शिता संवर्धन और जबाबदेही निर्धारण' के क्षेत्र  में कार्यरत है l बकौल उर्वशी उनके संगठन के संज्ञान में आया है कि उत्तर प्रदेश के राज्य सूचना आयुक्तों द्वारा आरटीआई आवेदकों को झूंठे मामलों में फंसाए जाने की घटनाओं और सूचना आवेदकों के प्रति पूर्वाग्रही होकर सुनवाईयां करने की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है. 



गौरतलब है कि बीते दिसम्बर में देश भर के बिभिन्न सामाजिक संगठनों ने उर्वशी की अगुआई में लखनऊ में न्याय यात्रा निकाल देश भर की अदालतों में ऑडियो  और वीडियो रिकॉर्डिंग कराने की आवाज बुलंद की थी. 





उर्वशी ने बताया कि उत्तर प्रदेश के राज्य सूचना आयुक्तों द्वारा आरटीआई आवेदकों को झूंठे मामलों में फंसाए जाने की घटनाओं और सूचना आवेदकों के प्रति पूर्वाग्रही होकर सुनवाईयां करने की बढ़ती घटनाओं के मद्देनज़र ही उन्होंने मुख्य सूचना आयुक्त से सभी सुनवाइयों की ऑडियो  और वीडियो रिकॉर्डिंग कराने के सम्बन्ध में अग्रेत्तर कार्यवाही करने का अनुरोध किया है.


 
 
 
उर्वशी ने बताया कि उनके संगठन ने इससे पूर्व भी एक मुहिम चलाकर सूचना आयोग पर जनदबाव बनाकर पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त रणजीत सिंह पंकज के कार्यकाल में पूरे सूचना आयोग में सीसीटीवी कैमरे लगबाये थे पर वर्तमान सूचना आयुक्तों द्वारा एक साजिश के तहत इनको निष्क्रिय कर दिया गया है.उर्वशी ने कहा कि वे इन निष्क्रिय कैमरों को चालू करवाने और खराब कैमरों को बदलवाने के बाद ही दम लेंगी. 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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