Thursday 30 October, 2014

अखिलेश सरकार ने पुनः टाला सूचना आयुक्तों की बैठक

http://www.jansattaexpress.net/print/8510.html

अखिलेश सरकार ने पुनः टाला सूचना आयुक्तों की बैठक

'तहरीर' के धरने और सूचना आयुक्तों को चुनौती देने से दबाब में आयी
सरकार ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना आयुक्त के चयन
के लिए बीते बृहस्पतिवार होने वाली बैठक स्थगित कर दी है। 'तहरीर' के
विरोध के चलते ही यह बैठक इसके पहले भी एक बार स्थगित हो चुकी है।

अखिलेश सरकार ने पुनः टाला सूचना आयुक्तों की बैठक 'तहरीर' के धरने और
सूचना आयुक्तों को चुनौती देने से दबाब में आयी सरकार ने उत्तर प्रदेश के
मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना आयुक्त के चयन के लिए बीते बृहस्पतिवार
होने वाली बैठक स्थगित कर दी है। 'तहरीर' के विरोध के चलते ही यह बैठक
इसके पहले भी एक बार स्थगित हो चुकी है।



उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त
का पद 30 जून 2014 से खाली है। इससे पहले सरकार ने इन दोनों पदों पर चयन
के लिए पहले 28 जून 2014 को चयन समिति की बैठक बुलाई थी जिसमें बिना
आवेदन के सीधे चयन समिति द्वारा इन दोनों पदों पर चयन की तैयारी थी जिसका
कड़ा विरोध किया गया था और पूर्व की भांति आवेदन मंगाने की मांग की गयी
थी। हमारे दबाब में यह बैठक स्थगित कर दी गई थी और प्रशासनिक सुधार विभाग
द्वारा बीते अगस्त में इन दोनों पदों पर चयन के लिए आवेदन मांगे गए थे।




लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के
मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर
कार्यशील संस्था 'तहरीर' द्वारा आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर दिनांक
12 अक्टूबर 2014 को राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान धरना स्थल पर
उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के निराशाजनक प्रदर्शन के विरोध में धरना
और यूपी के हालिया कार्यरत 9 सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते
हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती के कार्यक्रम का
आयोजन येश्वर्याज सेवा संस्थान, एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु इनफार्मेशन ,
आरटीआई कॉउंसिल ऑफ़ यूपी , ट्रैप संस्था अलीगढ , सूचना का अधिकार
कार्यकर्ता एसोसिएशन, पीपल्स फोरम, मानव विकास सेवा समिति मुरादाबाद , जन
सूचना अधिकार जागरूकता मंच,भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच , एसआरपीडी
मेमोरियल समाज सेवा संस्थान , आल इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स एंड शैडयूल्ड
ट्राइब्स एम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन, भागीदारी मंच, सार्वजनिक जबाबदेही
भारत निर्माण मंच आदि संगठनों के साथ संयुक्त रूप से किया गया. कार्यक्रम
में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया लखनऊ चैप्टर, सोसाइटी फॉर फ़ास्ट
जस्टिस लखनऊ और उत्तर प्रदेश रोडवेज संविदा कर्मचारी संघ ने भी तहरीर को
समर्थन प्रदान करते हुए शिरकत की थी l 'तहरीर' इन सभी संगठनों को उनके
सहयोग के लिए धन्यवाद ज्ञापित करता है l इस सम्बन्ध में ज्ञापन को जिला
प्रशासन के माध्यम से भेजने के साथ साथ हमारे द्वारा सीधे उत्तर प्रदेश
के राज्यपाल महोदय को तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश को भी प्रेषित कर दिया
गया है जो इस स्टेटस के साथ अपलोड किया जा रहा है।

यदि आपके पास भी मीडिया जगत से संबंधित कोई समाचार या फिर आलेख हो तो
हमें jansattaexp@gmail.com पर य़ा फिर फोन नंबर 9650258033 पर बता सकते
हैं। हम आपकी पहचान हमेशा गुप्त रखेंगे। - संपादक

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Urvashi Sharma
Secretary - YAISHWARYAJ SEVA SANSTHAAN
101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
Rajajipuram,Lucknow-226017,Uttar Pradesh,India
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Only 7% IAS officers filed property returns

http://www.sunday-guardian.com/news/only-7-ias-officers-filed-property-returns

Only 7% IAS officers filed property returns

Out of the serving 4,619 officers, only 311 IAS officers have filed the returns.
NAVTAN KUMAR New Delhi | 25th Oct 2014


DoPT's IPR rules are listed on its website.

everal Indian Administrative Service (IAS) officers are reluctant to
file annual property returns, a mandatory obligation under the Lokpal
and Lokayukta Act.

According to an RTI reply, the Department of Personnel and Training
(DoPT) has said that only "311 IAS officers have filed online property
returns in the prescribed format as mentioned in the Lokpal and
Lokayukta Act".

Though the sanctioned strength of the IAS is 6,270, the total number
of serving IAS officers in the country is 4,619, as per information
provided by the DoPT. That means only about 7% of them have filed
their returns.

In July, the DoPT under the Ministry of Personnel, Public Grievances
and Pensions, had issued a notification that under the Lokpal and
Lokayuktas Act, every public servant must every year file a
declaration, information and annual returns of his assets and
liabilities as of 31 March on or before 31 July. However, for the
current year, the last date of filing such returns was postponed to 15
September.

The government had introduced the facility of filing the returns
online, for which an application named Property Related Information
System (PRISM) has been designed.

"If IAS officers themselves do not follow the government's directives,
how can they expect others to do so?" asked Sanjay Sharma, the
Lucknow-based RTI activist who filed the query.

"Corruption is another aspect of this issue. The fact that they are
reluctant to share information about their property hints at possible
corruption. Our Prime Minister's USP is good governance. If IAS
officers conceal information about their property, how can Narendra
Modi's vision of providing good and efficient governance be realised?"
Sharma asked.

Wednesday 22 October, 2014

सोचिये मोहान रोड स्थित गोविन्द बल्लभ पंत पालीटेक्निक के छात्रों को क्या और कैसी शिक्षा देता होगा अखिलेश राज के भ्रष्ट आईएएस अधिकारी प्रमुख सचिव समाज कल्याण सुनील कुमार का कृपापात्र ये श्री ४२० अध्यापक पवन कुमार मिश्रा ?

सोचिये मोहान रोड स्थित गोविन्द बल्लभ पंत पालीटेक्निक के छात्रों को
क्या और कैसी शिक्षा देता होगा अखिलेश राज के भ्रष्ट आईएएस अधिकारी
प्रमुख सचिव समाज कल्याण सुनील कुमार का कृपापात्र ये श्री ४२० अध्यापक
पवन कुमार मिश्रा ?

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पाॅलीटेक्निक का कार्यशाला अधीक्षक कोर्ट में तलब

लखनऊ (ब्यूरो)। फर्जी प्रमाण पत्र के सहारे पालीटेक्निक कॉलेज में नौकरी
करने के आरोपों को लेकर राजकीय गोविन्द बल्लब पंत पालीटेक्निक के
कार्यशाला अधीक्षक पवन कुमार मिश्रा के खिलाफ सीजेएम सुनील कुमार ने
सम्मन जारी किया है। कोर्ट ने आरोपी को तलब करते हुए मामले की सुनवाई के
लिए 22 नवंबर की तारीख तय की है।

पत्रावली के अनुसार राजाजीपुरम की रहने वाली उर्वशी शर्मा ने 28 जनवरी
2008 को काकोरी थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि उसके पति संजय शर्मा का
चयन 29 जून 1995 को लोक सेवा आयोग से हो गया था। इसी बीच मोहान रोड स्थित
गोविन्द बल्लभ पंत पालीटेक्निक में 40 रुपये प्रति कक्षा के हिसाब से
पढ़ा रहे पवन कुमार मिश्रा ने हाईकोर्ट में खुद को बेरोजगार तथा मैकेनिकल
इंजीनियर बताकर नियुक्ति पर स्टे ले लिया था। कहा गया कि पवन मिश्रा ने
खुद को मैकेनिकल इंजीनियर बताया जबकि वह प्रोडक्शन में इंजीनियर है। आरोप
लगाया गया कि पवन मिश्रा ने नौकरी प्राप्त करने के लिए जिस समयावधि में
खुद को बेरोजगार बताया था उसी समय वह अवध इंडस्ट्रीज का कार्य अनुभव का
प्रमाण पत्र लगाकर सेवा लाभ ले लिया। इस वजह से संजय शर्मा को 5 वर्ष से
अधिक समय तक सेवा से वंचित रहना पड़ा।

काकोरी पुलिस ने मामले की विवेचना के बाद 20 सितंबर 2008 को मामले में
फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी। जिसको उर्वशी शर्मा द्वारा चुनौती दी गई थी।
कोर्ट ने वादिनी के पेश किए साक्ष्य देखने के बाद पवन कुमार मिश्रा को
प्रथम दृष्टया आरोपी पाते हुए तलब किया है।

http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20141021g_006163009&ileft=619&itop=403&zoomRatio=211&AN=20141021g_006163009


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Sunday 19 October, 2014

तहरीर' के धरने और सूचना आयुक्तों को चुनौती देने से दबाब में आयी सरकार ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना आयुक्त के चयन के लिए बीते बृहस्पतिवार होने वाली बैठक स्थगित

Taken From Facebook wall of Sanjay Sharma

'तहरीर' के धरने और सूचना आयुक्तों को चुनौती देने से दबाब में आयी सरकार
ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना आयुक्त के चयन के लिए
बीते बृहस्पतिवार होने वाली बैठक स्थगित कर दी है l 'तहरीर' के विरोध के
चलते ही यह बैठक इसके पहले भी एक बार स्थगित हो चुकी है।

उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना
आयुक्तका पद 30 जून 2014 से खाली है। इससे पहले सरकार ने इन दोनों पदों
पर चयन के लिए पहले 28 जून 2014 को चयन समिति की बैठक बुलाई थी जिसमें
बिना आवेदन के सीधे चयन समिति द्वारा इन दोनों पदों पर चयन की तैयारी थी
जिसका हमारे द्वारा कड़ा विरोध किया गया था और पूर्व की भांति आवेदन
मंगाने की मांग की गयी थी l हमारे दबाब में यह बैठक स्थगित कर दी गई थी
और प्रशासनिक सुधार विभाग द्वारा बीते अगस्त में इन दोनों पदों पर चयन के
लिए आवेदन मांगे गए थे l

लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के
मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर
कार्यशील संस्था 'तहरीर' द्वारा आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर दिनांक
12 अक्टूबर 2014 को राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान धरना स्थल पर
उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के निराशाजनक प्रदर्शन के विरोध में धरना
और यूपी के हालिया कार्यरत 9 सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते
हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती के कार्यक्रम का
आयोजन येश्वर्याज सेवा संस्थान, एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु इनफार्मेशन ,
आरटीआई कॉउंसिल ऑफ़ यूपी , ट्रैप संस्था अलीगढ , सूचना का अधिकार
कार्यकर्ता एसोसिएशन, पीपल्स फोरम, मानव विकास सेवा समिति मुरादाबाद , जन
सूचना अधिकार जागरूकता मंच,भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच , एसआरपीडी
मेमोरियल समाज सेवा संस्थान , आल इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स एंड शैडयूल्ड
ट्राइब्स एम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन, भागीदारी मंच, सार्वजनिक जबाबदेही
भारत निर्माण मंच आदि संगठनों के साथ संयुक्त रूप से किया गया l
कार्यक्रम में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया लखनऊ चैप्टर, सोसाइटी फॉर
फ़ास्ट जस्टिस लखनऊ और उत्तर प्रदेश रोडवेज संविदा कर्मचारी संघ ने भी
तहरीर को समर्थन प्रदान करते हुए शिरकत की थी l 'तहरीर' इन सभी संगठनों
को उनके सहयोग के लिए धन्यवाद ज्ञापित करता है l इस सम्बन्ध में ज्ञापन
को जिला प्रशासन के माध्यम से भेजने के साथ साथ हमारे द्वारा सीधे उत्तर
प्रदेश के राज्यपाल महोदय को तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश को भी प्रेषित
कर दिया गया है जो इस स्टेटस के साथ अपलोड किया जा रहा है l

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के भाई के ससुर को सूचना आयुक्त नियुक्त करने का उदाहरण देते हुए सूचना आयोगों में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में भाई-भतीजावाद रोकने के लिए नियमों में संशोधन करने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर

http://www.livehindustan.com/news/desh/deshlocalnews/article1--39-0-457320.html


Image Loading बिलावल को जवाब नहीं देना चाहते इमरान नतीजा लाइव:
महाराष्ट्र में भाजपा को शुरुआती बढ़त, हरियाणा में भी आगे नतीजा लाइव:
महाराष्ट्र में भाजपा को शुरुआती बढ़त, हरियाणा में भी आगे नतीजा लाइव:
महाराष्ट्र में भाजपा को शुरुआती बढ़त, हरियाणा में भी आगे डीजी पर
आत्महत्या के लिए मजबूर करने का आरोप जम्मू-कश्मीर में चुनाव तारीख पर
और विचार करेगा आयोग हरियाणा में निर्दलियों से सम्पर्क साध रही है भाजपा
मोदी सरकार की राह में रोड़ा नहीं अटकाना चाहता संघ मोदी सरकार की राह
में रोड़ा नहीं अटकाना चाहता संघ मोदी सरकार की राह में रोड़ा नहीं
अटकाना चाहता संघ


सूचना आयोग में भाई-भतीजावाद रोकने की मांग
नई दिल्ली, श्याम सुमन
First Published:18-10-14 09:22 PM
Last Updated:18-10-14 09:22 PM


उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के भाई के ससुर को सूचना आयुक्त नियुक्त
करने का उदाहरण देते हुए सूचना आयोगों में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति
में भाई-भतीजावाद रोकने के लिए नियमों में संशोधन करने की याचिका सुप्रीम
कोर्ट में दायर की गई है।

लोक प्रहरी संगठन ने याचिका में कहा है कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के
नियमों में उम्मीदवारों के लिए सार्वजनिक जीवन में 'ख्यातिलब्ध हस्ती' की
परिभाषा स्पष्ट करनी चाहिए, क्योंकि इस श्रेणी के तहत सरकारें अपनी मर्जी
के व्यक्तियों को सूचना आयुक्त बना रही हैं, जो न तो स्वतंत्र हैं और न
ही निष्पक्ष। इस प्रक्रिया में पारदिर्शता है, क्योंकि शार्ट लिस्ट किए
गए लोगों के नाम सार्वजनिक नहीं किए जाते।

लोकप्रहरी के संगठन के संयोजक तथा पूर्व आईएएस एसएन शुक्ला ने कहा कि
याचिका में यूपी में हाल ही में आठ सूचना आयुक्त नियुक्त किए गए हैं,
जिन्हें हाईकोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम
कोर्ट इस बारे में कानून बना सकता है, क्योंकि सूचना के अधिकार कानून के
तहत नियुक्तियों के बारे में नियम अब तक नहीं बनाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट
कई फैसलों में तय कर चुका है कि जहां विधायिका ने कानून नहीं बनाया है,
वहां नागरिकों के मौलिक अधिकारों को संरक्षित करने के लिए न्यायिक
हस्तक्षेप से कानून बनाए जा सकते हैं।

याचिका में शुक्ला ने कहा कि सार्वजनिक जीवन में 'ख्यातिलब्ध हस्ती' में
सामाजिक कार्यो में पद्मभूषण या पद्मविभूषण, राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय
पुरस्कार प्राप्त व्यक्तियों को रखना चाहिए। साथ ही उन्हें व्यापक ज्ञान
और अनुभव भी होना चाहिए। यह योग्यता ऐसी हो जिसकी पुष्टि की जा सके।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एचएल दत्तू की पीठ इस याचिका पर 15 दिसंबर को
सुनवाई करेगी। लोकप्रहरी की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट गत वर्ष आपराधिक
मामलों में दंडित जनप्रतिनिधियों को तुरंत प्रभाव से अयोग्य घोषित करने
का फैसला दिया था।


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Thursday 16 October, 2014

आरटीआई विशेषज्ञ संजय की चुनौती पर सामने नहीं आया यूपी का कोई सूचना आयुक्त!

आरटीआई विशेषज्ञ संजय की चुनौती पर सामने नहीं आया यूपी का कोई सूचना आयुक्त!
Posted On 14 October 2014, By Dialogue India

आज आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान
धरना स्थल पर पूर्वान्ह 11 बजे से अपरान्ह 03 बजे तक संस्था 'येश्वर्याज
सेवा संस्थान' द्वारा जनसुनवाई और जनजागरूकता कैंप का आयोजन किया गया तो
वही लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के
मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर
कार्यशील संस्था 'तहरीर' द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के
निराशाजनक प्रदर्शन के विरोध में धरना और यूपी के हालिया कार्यरत 9 सूचना
आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट पर खुली
बहस की आरटीआई विशेषज्ञ ई० संजय शर्मा द्वारा दी गयी चुनौती के कार्यक्रम
का आयोजन एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु इनफार्मेशन, आरटीआई कॉउंसिल ऑफ़ यूपी,
ट्रैप संस्था अलीगढ, सूचना का अधिकार कार्यकर्ता एसोसिएशन, पीपल्स फोरम,
मानव विकास सेवा समिति मुरादाबाद , जन सूचना अधिकार जागरूकता मंच,
भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच, एसआरपीडी मेमोरियल समाज सेवा संस्थान, आल
इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स एंड शैडयूल्ड ट्राइब्स एम्पलाइज वेलफेयर
एसोसिएशन, भागीदारी मंच, सार्वजनिक जबाबदेही भारत निर्माण मंच आदि
संगठनों के साथ संयुक्त रूप से किया गया l कार्यक्रम की अध्यक्षता तहरीर
संस्था के संस्थापक और अध्यक्ष ईo संजय शर्मा ने की l संजय शर्मा की
गिनती देश के मूर्धन्य आरटीआई विशेषज्ञों में होती है और उत्तर प्रदेश
में आरटीआई के क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता का लोहा प्रदेश के सभी आरटीआई
कार्यकर्ता मानते हैं l कार्यक्रम में प्रतिभागी संगठनों के प्रतिनिधियों
के साथ साथ उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने
प्रतिभाग किया l कैंप में आरटीआई विशेषज्ञों ने लोगों को आरटीआई के
जनोपयोगी प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया तो वही जनसुनवाई में
जनसूचना अधिकारी, अपीलीय प्राधिकारी और सूचना आयोग की आरटीआई एक्ट के
क्रियान्वयन के प्रति उदासीनता से व्यथित लोगों ने अपनी समस्याएं आरटीआई
विशेषज्ञों के साथ साझा कर समस्याओ के समाधान के सम्बन्ध में मार्गदर्शन
प्राप्त किया l संयुक्त कार्यक्रम के प्रतिभागियों ने अपनी मांगों के
सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को सम्बोधित एक मांगपत्र
हस्ताक्षरित कर प्रेषित किया l कार्यक्रम में कामनवेल्थ ह्यूमन राइट्स
इनिशिएटिव नई दिल्ली की ओर से येश्वर्याज को निःशुल्क उपलब्ध कराई गयी
आरटीआई गाइड का भी निःशुल्क वितरण किया गया l

इस सम्बन्ध में बात करते हुए संजय शर्मा ने बताया कि लोक जीवन में
पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के
संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था
'तहरीर' को प्राप्त प्रमाणों के आधार पर उन्हें यह कहने में कोई गुरेज
नहीं है कि सूचना आयुक्तों की अक्षमता के कारण ही आरटीआई के तहत सूचना
दिलाने बाली संस्था सूचना आयोग ही आज सूचना दिलाने के मार्ग की सबसे बड़ी
वाधा बन गयी है l संजय ने कहा कि इन सूचना आयुक्तों की पोल-पट्टी खोलकर
इनकी हकीकत संसार के सामने लाने के लिए ही उन्होंने यूपी के हालिया
कार्यरत 9 सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के
सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती दी है और कहा कि इन आयुक्तों से हार
जाने की दशा में उन्होंने इन आयुक्तों द्वारा मुक़र्रर सजाये मौत तक की हर
सजा को स्वीकारने का वादा भी किया है l संजय ने बताया कि चुनौती के
सम्बन्ध में उन्होंने राज्य सूचना आयोग को 2 ई-मेल दिनांक 09-10-14 और
10-10-14 को प्रेषित करने के साथ साथ उत्तर प्रदेश के राज्य सूचना आयोग
के सचिव के कार्यालय में दिनांक 10-10-14 को एक तीन पेज का चुनौती पत्र
व्यक्तिगत रूप से आयोग जाकर भी प्राप्त करा दिया है l संजय ने बताया कि
उनके आंकलन के अनुसार उत्तर प्रदेश के वर्तमान सूचना आयुक्तों में से कोई
भी सूचना आयुक्त पद के लिए निर्धारित योग्यताओं में से 10% भी योग्यता
धारित नहीं करते है l संजय बताते हैं कि प्रदेश के सूचना आयुक्त का पद
मुख्य सचिव के समकक्ष है और एक सवाल उठाते हैं कि क्या यह माना जा सकता
है कि जिस कार्यालय में योग्यतानुसार नियुक्त 9 मुख्य सचिव कार्यरत हों
वहां ऐसी भयंकर बदहाली व्याप्त हो जबकि मात्र 1 मुख्य सचिव पूरा सूबा
संभालता है ? इस सबाल का जबाब देते हुए संजय कहते हैं कि ऐसा इसलिए है
क्योंकि वर्तमान में नियुक्त सभी सूचना आयुक्त नितांत अयोग्य हैं और वे
मात्र अपने राजनैतिक संबंधों के चलते ही यह महत्वपूर्ण पद पा गए हैं l
बौद्धिक असम्बेदनशीलता , अक्षमता और अपने राजनैतिक आकाओं के दबाब के चलते
ही वे अपने पद की गरिमा के अनुकूल कार्य नहीं कर पा रहे हैं और इस उच्च
पद को कलंकित कर रहे हैं l

आरटीआई विशेषज्ञ संजय शर्मा ने बताया कि उनकी खुली बहस की चुनौती पर आज
यूपी का कोई भी सूचना आयुक्तसामने नहीं आया l संजय ने अब अयोग्य सूचना
आयुक्तों की नियुक्तियां रद्द कराने को उच्च न्यायालय में याचिका दायर
करने का निर्णय लिया है l

आरटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा के अनुसार उत्तर प्रदेश सूचना आयोग स्वयं
ही आरटीआई एक्ट का विनाश करने में लगा है l उर्वशी ने कहा कि यह
दुर्भाग्यपूर्ण है कि नौ सूचना आयुक्त नियुक्त होने के बाबजूद आयोग में
55000 से अधिक वाद लंबित हैं जो पूरे देश के सभी सूचना आयोगों में
सर्वाधिक हैं l नौ सालों में आयोग की नियमावली तक नहीं लागू हो पाई है और
आयोग का हर कार्मिक मनमाने रूप से स्व घोषित नियमों के अनुसार कार्य कर
रहा है जिसके कारण उत्तर प्रदेश में लागू होने के 9 वर्षों में ही सूचना
का अधिकार लगभग मृतप्राय हो चुका है l

यूपी के राज्य सूचना आयोग के खिलाफ लामबंद हुए संगठनों ने एक सुर से
सूचना आयुक्तों द्वारा आयुक्त पद ग्रहण करने के बाद से अब तक की अवधि में
चल-अचल सम्पत्तियों में किये गए निवेशों को सार्वजनिक कराने, यूपी के
अक्षम सूचना आयुक्तों को तत्काल निलंबित कर के उनके अब तक के कार्यों की
विधिक समीक्षा कराकर इनके विरुद्ध कार्यवाही कराने , सूचना आयुक्तों के
रिक्त पदों पर पद की योग्यतानुसार पारदर्शी प्रक्रिया से सूचना आयुक्तों
की नियुक्ति कराने , 55000 से अधिक लम्वित वादों की विशेष सुनवाईयां
शनिवार और रविवार के अवकाश के दिनों में कराने, आयोग की नियमावली तत्काल
लागू कराने,आयोग में नयी अपीलों और शिकायतों के प्राप्त होने के 1 सप्ताह
के अंदर प्रथम सुनवाई कराने, आदेशों की नक़ल आदेश होने के 1 सप्ताह के
अंदर आयोग की वेबसाइट पर अपलोड कराने, सूचना आयोग में रिश्वत मांगे जाने
की शिकायतें करने के लिए एक सतर्कता अधिकारी नियुक्त कराने , अपीलों और
शिकायतों की सुनवाई की अगली तारीखें अधिकतम 30 दिन बाद की देने,सूचना
आयुक्तों और नागरिकों/ आरटीआई कार्यकर्ताओं के पारस्परिक संवाद की
प्रणाली विकसित करके प्रतिमाह एक बैठक कराने, आरटीआई कार्यकर्ताओं को
जनहित के लिए सूचना मांगने को प्रेरित करने का तंत्र विकसित कराने, सूचना
आयोग में वादियों के मानवाधिकारों को संरक्षित रखने हेतु उनको खड़ा कर के
सुनवाई करने के स्थान पर कुर्सी पर बैठाकर सुनवाई कराने, वादियों को झूठे
मामलों में फसाए जाने की स्थिति में अपना समुचित वचाव करने के लिए वादी
द्वारा मांगे जाने पर आयोग की सीसीटीवी फुटेज तत्काल उपलब्ध कराने,
आयुक्तों द्वारा पारित आदेश लोकप्राधिकारियों की सुविधानुसार बदलने की
प्रवृत्ति रोकने के लिए आयुक्त के स्टेनो की शॉर्टहैंड बुक पर पेंसिल के
स्थान पर पेन से लिखना अनिवार्य करने तथा शॉर्टहैंड बुक पर उपस्थित वादी
और प्रतिवादी के हस्ताक्षर कराने , आयुक्तों द्वारा दण्डादेशों को बापस
लेने के असंवैधानिक कारनामों पर तत्काल रोक लगाने, कार्यस्थल पर यौन
उत्पीड़न रोकथाम कानून के तहत तत्काल समिति बनाकर इस समिति द्वारा अब तक
सूचना आयुक्तों के विरुद्ध महिलाओं द्वारा की गयी उत्पीड़न की शिकायतों की
तत्काल जांच कराने, आयोग के कार्यालयीन कार्यों की लिखित प्रक्रिया बनाये
जाने, आयोग के द्वारा सम्पादित कार्यों की मासिक रिपोर्ट तैयार कराकर
स्वतः ही सार्वजनिक कराने आदि मांगों के साथ धरना देते हुए राज्यपाल को
एक ज्ञापन भी प्रेषित किया l
कार्यक्रम का समापन करते हुए येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव उर्वशी
शर्मा ने सभी आगंतुकों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए 3 माह में उनकी
मांगें न माने जाने पर प्रदेश के अन्य सभी संगठनों को साथ लेकर सूचना
आयोग और प्रदेश सरकार के खिलाफ वृहद स्तर पर उग्र आंदोलन करने को तैयार
रहने का आव्हान किया l

CURRENT ISSUE
October 2014
SPECIAL ISSUE
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Tuesday 14 October, 2014

दस साल में निकला दम

दस साल में निकला दम
http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/guestcolumn/article1-Well-known-British-poet-scholar-Richard-Garnet-50-62-456122.html
फरजंद अहमद, पूर्व सूचना आयुक्त, बिहार
First Published:12-10-14 09:10 PM
Last Updated:12-10-14 09:10 PM

जाने-माने ब्रिटिश कवि और स्कॉलर रिचर्ड गारनेट ने एक बार कहा था कि हर
परदे की ख्वाहिश होती है कि कोई उसे बेपरदा करे, सिवाय पाखंड के परदे का।
पाखंड का परदा व्यवस्था के चेहरे से उठे या न उठे, मगर सूचना के अधिकार
का इस्तेमाल करने वालों के बीच फैलता खौफ और सरकारी कामकाज में
पारदर्शिता की गारंटी देने वाला सूचना अधिकार कानून खुद पाखंड के परदे के
भीतर दम तोड़ रहा है। आज आरटीआई की दसवीं वर्षगांठ है, मगर पहली बार
केंद्रीय सूचना आयोग में न तो कोई शिकवा-शिकायत करने वाला होगा और न ही
सूचना का अधिकार, यानी सनशाइन कानून पर मंडराते स्याह बादलों पर कोई
चर्चा होगी। केवल बंद कमरे में एक औपचारिकता पूरी की जाएगी, क्योंकि
केंद्रीय सूचना आयोग में फिलहाल कोई मुख्य सूचना आयुक्त नहीं। पहले
राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री इसका उद्घाटन करते थे और सरकार की नजर में इस
कानून की कमजोरियों या उपलब्धि पर बहस की शुरुआत करते थे, लेकिन नई सरकार
को इतनी फुरसत नहीं मिली कि वह मुख्य सूचना आयुक्त नियुक्त कर सके।

जो कानून अब तक जनता के हाथ में एक धारदार हथियार था, प्रजातंत्र के लिए
ऑक्सीजन था, उस हथियार की धार दस वर्षों में ही कुंद हो चुकी है। सरकारें
या प्रशासन हर आवेदक को शक की नजरों से देखते हैं, इसलिए लोक सूचना
पदाधिकारी सूचना देने से कतराते हैं या फिर उन्हें दौड़ाते रहते हैं।
नतीजा यह है कि वादों का अंबार आकाश छू रहा है। आवेदक अपनी अपील लेकर
आयोग का चक्कर काटते-काटते थकते जा रहे हैं। युवा सामाजिक कार्यकर्ता
उत्कर्ष सिन्हा को लगता है कि अब हर आवेदक राग दरबारी का बेबस लंगड़
बनकर रह जाएगा, जिसने पूरी जिंदगी एक दस्तावेज की नकल के लिए गंवा दी थी।
आरटीआई असेसमेंट और एडवोकेसी ग्रुप और समय-सेंटर फॉर इक्विटीज के अनुसार,
आज सूचना आयोगों में करीब दो लाख वाद सुनवाई के लिए तरस रहे हैं। अध्ययन
के अनुसार, मध्य प्रदेश में यदि आज कोई अपील दाखिल करता है, तो 60 साल
बाद उसका नंबर आएगा। वहीं पश्चिम बंगाल में उसे 17 साल, राजस्थान में तीन
साल, असम और केरल में दो साल इंतजार करना होगा। खुद केंद्रीय सूचना आयोग
में 26,115 मामले लंबित हैं।

अध्ययन के अनुसार, सबसे अधिक मामले सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में
लंबित हैं। इनकी संख्या 48,442 है, जबकि महाराष्ट्र सूचना मांगने वालों
की हत्या और उत्पीड़न में पूरे देश में अव्वल नंबर पर है। कॉमनवेल्थ
ह्यूमन राइट इनीशिएटिव के अनुसार, महाराष्ट्र में अब तक 53 आवेदकों पर
जानलेवा हमले हो चुके हैं, जिनमें नौ लोगों की जान जा चुकी है, जबकि
बिहार में छह लोग सूचना मांगने के कारण मारे गए हैं। जाने-माने आरटीआई
एक्टिविस्ट शिव प्रकाश राय (जिन्होंने सूचना मांगने के कारण झूठे मामले
में कई महीने जेल में गुजारे थे) के अनुसार, बिहार में आवेदकों पर अब
हमले कुछ कम इसलिए हो रहे हैं, क्योंकि दहशत के कारण लोग सूचना मांगने के
पहले कई बार सोचते हैं। महाराष्ट्र के बाद गुजरात का नंबर आता है, जहां
34 कार्यकर्ताओं पर हमले हो चुके हैं। उनमें से तीन मारे जा चुके हैं।

मगर उत्तर प्रदेश में सूचना की बदहाली नई मिसाल कायम कर रही है। यहां
फिलहाल नौ सूचना आयुक्त हैं, जिनकी काबिलियत और उदासीनता पर चर्चा चल रही
है। अन्य संस्थानों के साथ-साथ एक्टिविस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता उर्वशी
शर्मा ने यूपी के सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए नौ
आयुक्तों को खुली बहस की चुनौती दी है। सामाजिक कार्यकर्ता, आरटीआई
विशेषज्ञ और 'तहरीर' के संस्थापक अध्यक्ष संजय शर्मा ने भी वर्तमान सूचना
आयुक्तों से एक साथ अकेले या खुली बहस करने की चुनौती दी है। पिछले तीन
वर्षों से केंद्र सरकार सूचना का अधिकार कानून को नई ताकत देने के नाम पर
इसे कमजोर करने का काम कर रही थी। साल 2011 में केंद्रीय सूचना आयोग ने
तत्कालीन राष्ट्रपति (प्रतिभा पाटिल) को अपनी संपत्ति का ब्योरा देने का
आदेश दिया था। उन्हीं दिनों 2-जी स्पेक्ट्रम के संबंध में तत्कालीन वित्त
मंत्री प्रणब मुखर्जी (अब राष्ट्रपति) की फाइल टिप्पणी को सरेआम करना
पड़ा था। फिर रॉबर्ट वाड्रा की लैंड डील का मामला आरटीआई के माध्यम से
उछला।

इन सबका असर सरकार पर दिखाई पड़ा। 15 अक्तूबर, 2011 को केंद्रीय सूचना
आयोग के सालाना सम्मलेन में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था
कि अब हमें सूचना के अधिकार कानून पर आलोचनात्मक रुख अपनाना होगा..,
आरटीआई का सरकारी विचार-विमर्श की प्रक्रिया पर उल्टा असर नहीं पड़ना
चाहिए। फिर अगले साल 12 अक्तूबर, 2012 को मनमोहन सिंह ने कहा कि निजता का
उल्लंघन करने वाली बेहूदा और परेशान करने वाली आरटीआई आवेदनों को लेकर
चिंता पैदा हो रही है। ठीक इसके बाद ही खबर आई थी कि केंद्र सरकार ने यह
फैसला किया है कि वह एक समिति गठित कर यह पता लगाएगी कि सूचना एकत्र करने
और देने पर सरकार का कितना खर्च आता है।

इस तरह की बात सूचना के अधिकार अधिनियम की आत्मा के खिलाफ है, क्योंकि इस
कानून की धारा 7(3) साफ तौर पर कहती कि सूचना की कॉपी पर खर्च आवेदक को
ही वहन करना होगा। साफ है कि दस साल के भीतर ही इसे कमजोर करने की कवायद
शुरू हो चुकी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के कई
फैसलों ने आवेदकों के बीच खलबली मचा दी थी। दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने
एक फैसला सुनाया था कि हर सूचना आयोग दो-आयुक्तों का पीठ होगा, जिसमें एक
हाई कोर्ट के जज होंगे। मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर कोई जज ही होगा। इस
आदेश के बाद कई राज्य आयोग का कामकाज बंद हो गया। बाद में खुद सुप्रीम
कोर्ट ने इस फैसले को 'मिस्टेक ऑफ लॉ' कहकर वापस ले लिया। बिहार सहित कई
राज्यों में धारा 20 के तहत लगाए गए दंड की सही तरीके से वसूली नहीं
होती, जिसके कारण लोक सूचना पदाधिकारियों का मनोबल बढ़ता जा रहा है और
आवेदक भटक रहे हैं। आज दुनिया के लगभग 100 देशों में सूचना का अधिकार
कानून लागू है। दक्षिण एशिया में भारत का कानून सबसे कारगर था, क्योंकि
खुद कार्यकर्ताओं ने इसकी रचना की थी और केंद्र सरकार ने भी इसे लागू
करने में खासी दिलचस्पी दिखाई थी। मगर अब जब सूचना का अधिकार कानून खुद
सरकारों के गले की हड्डी बन चुका है, तब कौन बचाए इसे?

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आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर जनसुनवाई का आयोजन

http://www.instantkhabar.com/lucknow/item/17779-lucknow.html
आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर जनसुनवाई का आयोजन

Written by Editor
Sunday, 12 October 2014 20:21
आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर जनसुनवाई का आयोजन
लखनऊ: आज आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण
मेला मैदान धरना स्थल पर 'येश्वर्याज सेवा संस्थान' द्वारा जनसुनवाई और
जनजागरूकता कैंप का आयोजन किया गया तो वही लोक जीवन में पारदर्शिता
संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के संरक्षण के
हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर
कार्यशील संस्था 'तहरीर' द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के
निराशाजनक प्रदर्शन के विरोध में धरना और यूपी के हालिया कार्यरत 9
सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट
पर खुली बहस की आरटीआई विशेषज्ञ ई० संजय शर्मा द्वारा दी गयी चुनौती के
कार्यक्रम का आयोजन एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु इनफार्मेशन , आरटीआई
कॉउंसिल ऑफ़ यूपी , ट्रैप संस्था अलीगढ , सूचना का अधिकार कार्यकर्ता
एसोसिएशन, पीपल्स फोरम, मानव विकास सेवा समिति मुरादाबाद , जन सूचना
अधिकार जागरूकता मंच,भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच , एसआरपीडी मेमोरियल
समाज सेवा संस्थान , आल इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स एंड शैडयूल्ड ट्राइब्स
एम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन, भागीदारी मंच, सार्वजनिक जबाबदेही भारत
निर्माण मंच आदि संगठनों के साथ संयुक्त रूप से किया गया l कार्यक्रम
की अध्यक्षता तहरीर संस्था के संस्थापक और अध्यक्ष ईo संजय शर्मा ने
की l संजय शर्मा की गिनती देश के मूर्धन्य आरटीआई विशेषज्ञों में होती है
और उत्तर प्रदेश में आरटीआई के क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता का लोहा
प्रदेश के सभी आरटीआई कार्यकर्ता मानते हैं lकार्यक्रम में प्रतिभागी
संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ साथ उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रतिभाग किया l कैंप में आरटीआई विशेषज्ञों ने
लोगों को आरटीआई के जनोपयोगी प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया तो वही
जनसुनवाई में जनसूचना अधिकारी, अपीलीय प्राधिकारी और सूचना आयोग की
आरटीआई एक्ट के क्रियान्वयन के प्रति उदासीनता से व्यथित लोगों ने अपनी
समस्याएं
आरटीआई विशेषज्ञों के साथ साझा कर समस्याओ के समाधान के सम्बन्ध
में मार्गदर्शन प्राप्त किया l संयुक्त कार्यक्रम के प्रतिभागियों ने
अपनी मांगों के सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को सम्बोधित एक
मांगपत्र हस्ताक्षरित कर प्रेषित किया l कार्यक्रम में कामनवेल्थ
ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव नई दिल्ली की ओर से येश्वर्याज को निःशुल्क
उपलब्ध कराई गयी आरटीआई गाइड का भी निःशुल्क वितरण किया गया l
इस सम्बन्ध में बात करते हुए संजय शर्मा ने बताया कि लोक जीवन में
पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के
संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था
'तहरीर' को प्राप्त प्रमाणों के आधार पर उन्हें यह कहने में कोई
गुरेज नहीं है कि सूचना आयुक्तों की अक्षमता के कारण ही आरटीआई के तहत
सूचना दिलाने बाली संस्था सूचना आयोग ही आज सूचना दिलाने के मार्ग की
सबसे बड़ी वाधा बन गयी है l संजय ने कहा कि इन सूचना आयुक्तों की
पोल-पट्टी खोलकर इनकी हकीकत संसार के सामने लाने के लिए ही उन्होंने यूपी
के हालिया कार्यरत 9 सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको
कैमरे के सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती दी है और कहा कि इन
आयुक्तों से हार जाने की दशा में उन्होंने इन आयुक्तों द्वारा मुक़र्रर
सजाये मौत तक की हर सजा को स्वीकारने का वादा भी किया है l संजय ने बताया
कि चुनौती के सम्बन्ध में उन्होंने राज्य सूचना आयोग को 2 ई-मेल दिनांक
09-10-14 और 10-10-14 को प्रेषित करने के साथ साथ उत्तर प्रदेश के राज्य
सूचना आयोग के सचिव के कार्यालय में दिनांक 10-10-14 को एक तीन पेज का
चुनौती पत्र व्यक्तिगत रूप से आयोग जाकर भी प्राप्त करा दिया है l संजय
ने बताया कि उनके आंकलन के अनुसार उत्तर प्रदेश के वर्तमान सूचना
आयुक्तों में से कोई भी सूचना आयुक्त पद के लिए निर्धारित योग्यताओं में
से 10% भी योग्यता धारित नहीं करते है l संजय बताते हैं कि प्रदेश के
सूचना आयुक्त का पद मुख्य सचिव के समकक्ष है और एक सवाल उठाते हैं कि
क्या यह माना जा सकता है कि जिस कार्यालय में योग्यतानुसार नियुक्त 9
मुख्य सचिव कार्यरत हों वहां ऐसी भयंकर बदहाली व्याप्त हो जबकि मात्र 1
मुख्य सचिव पूरा सूबा संभालता है ? इस सबाल का जबाब देते हुए संजय कहते
हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि वर्तमान में नियुक्त सभी सूचना आयुक्त
नितांत अयोग्य हैं और वे मात्र अपने राजनैतिक संबंधों के चलते ही यह
महत्वपूर्ण पद पा गए हैं l बौद्धिक असम्बेदनशीलता , अक्षमता और अपने
राजनैतिक आकाओं के दबाब के चलते ही वे अपने पद की गरिमा के अनुकूल कार्य
नहीं कर पा रहे हैं और इस उच्च पद को कलंकित कर रहे हैं l
आरटीआई विशेषज्ञ संजय शर्मा ने बताया कि उनकी खुली बहस की चुनौती
पर आज यूपी का कोई भी सूचना आयुक्तसामने नहीं आया l संजय ने अब अयोग्य
सूचनाआयुक्तों की नियुक्तियां रद्द कराने को उच्च न्यायालय में याचिका
दायर करने का निर्णय लिया है l
आरटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा के अनुसार उत्तर प्रदेश सूचना आयोग
स्वयं ही आरटीआई एक्ट का विनाश करने में लगा है l उर्वशी ने कहा कि यह
दुर्भाग्यपूर्ण है कि नौ सूचना आयुक्त नियुक्त होने के बाबजूद आयोग में
55000 से अधिक वाद लंबित हैं जो पूरे देश के सभी सूचना आयोगों में
सर्वाधिक हैं l नौ सालों में आयोग की नियमावली तक नहीं लागू हो पाई है और
आयोग का हर कार्मिक मनमाने रूप से स्व घोषित नियमों के अनुसार कार्य कर
रहा है जिसके कारण उत्तर प्रदेश में लागू होने के 9 वर्षों में हीसूचना
का अधिकार लगभग मृतप्राय हो चुका है l
यूपी के राज्य सूचना आयोग के खिलाफ लामबंद हुए संगठनों ने एक सुर
से सूचना आयुक्तों द्वारा आयुक्त पद ग्रहण करने के बाद से अब तक की अवधि
में चल-अचल सम्पत्तियों में किये गए निवेशों को सार्वजनिक कराने, यूपी के
अक्षम सूचना आयुक्तों को तत्काल निलंबित कर के उनके अब तक के कार्यों की
विधिक समीक्षा कराकर इनके विरुद्ध कार्यवाही कराने , सूचना आयुक्तों के
रिक्त पदों पर पद की योग्यतानुसार पारदर्शी प्रक्रिया से सूचना आयुक्तों
की नियुक्ति कराने , 55000 से अधिक लम्वित वादों की विशेष सुनवाईयां
शनिवार और रविवार के अवकाश के दिनों में कराने, आयोग की नियमावली तत्काल
लागू कराने,आयोग में नयी अपीलों और शिकायतों के प्राप्त होने के 1
सप्ताह के अंदर प्रथम सुनवाई कराने, आदेशों की नक़ल आदेश होने के 1 सप्ताह
के अंदर आयोग की वेबसाइट पर अपलोड कराने, सूचना आयोग में रिश्वत मांगे
जाने की शिकायतें करने के लिए एक सतर्कता अधिकारी नियुक्त कराने , अपीलों
और शिकायतों की सुनवाई की अगली तारीखें अधिकतम 30 दिन बाद की देने,सूचना
आयुक्तों और नागरिकों/ आरटीआई कार्यकर्ताओं के पारस्परिक संवाद की
प्रणाली विकसित करके प्रतिमाह एक बैठक कराने, आरटीआई कार्यकर्ताओं को
जनहित के लिए सूचना मांगने को प्रेरित करने का तंत्र विकसित कराने ,
सूचना आयोग में वादियों के मानवाधिकारों को संरक्षित रखने हेतु उनको खड़ा
कर के सुनवाई करने के स्थान पर कुर्सी पर बैठाकर सुनवाई कराने ,
वादियों को झूठे मामलों में फसाए जाने की स्थिति में अपना समुचित वचाव
करने के लिए वादी द्वारा मांगे जाने पर आयोग की सीसीटीवी फुटेज तत्काल
उपलब्ध कराने, आयुक्तों द्वारा पारित आदेश लोकप्राधिकारियों की
सुविधानुसार बदलने की प्रवृत्ति रोकने के लिए आयुक्त के स्टेनो की
शॉर्टहैंड बुक पर पेंसिल के स्थान पर पेन से लिखना अनिवार्य करने तथा
शॉर्टहैंड बुक पर उपस्थित वादी और प्रतिवादी के हस्ताक्षर कराने ,
आयुक्तों द्वारा दण्डादेशों को बापस लेने के असंवैधानिक कारनामों पर
तत्काल रोक लगाने, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकथाम कानून के तहत तत्काल
समिति बनाकर इस समिति द्वारा अब तक सूचना आयुक्तों के विरुद्ध महिलाओं
द्वारा की गयी उत्पीड़न की शिकायतों की तत्काल जांच कराने, आयोग के
कार्यालयीन कार्यों की लिखित प्रक्रिया बनाये जाने, आयोग के द्वारा
सम्पादित कार्यों की मासिक रिपोर्ट तैयार कराकर स्वतः ही सार्वजनिक
कराने आदि मांगों के साथ धरना देते हुए राज्यपाल को एक ज्ञापन भी प्रेषित
किया l
कार्यक्रम का समापन करते हुए येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव उर्वशी
शर्मा ने सभी आगंतुकों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए 3 माह में उनकी
मांगें न माने जाने पर प्रदेश के अन्य सभी संगठनों को साथ लेकर सूचना
आयोग और प्रदेश सरकार के खिलाफ वृहद स्तर पर उग्र आंदोलन करने को तैयार
रहने का आव्हान किया l
खबर की श्रेणी लखनऊ
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आरटीआई का पालन नहीं होने पर धरना

आरटीआई का पालन नहीं होने पर धरना
Oct 13, 2014, 06.30AM IST
एनबीटी, लखनऊ : सूचना का अधिकार अधिनियम के नौ वर्ष पूरे होने पर राजधानी
के कई संगठनों ने लक्ष्मण मेला मैदान में धरना दिया। धरने पर बैठे संगठन
के सदस्यों का कहना था कि राज्य सूचना आयोग समेत कई विभाग नियमों को ताख
पर रख आरटीआई कानून की अवहेलना करते हैं। कार्यक्रम के मीडिया प्रभारी
ज्ञानेश पांडेय ने कहा कि इस कार्यक्रम में सूचना आयुक्तों से डीबेट करने
की खुली छूट दी गई थी, लेकिन कार्यक्रम में कोई नहीं आया। उन्होंने कहा
कि सूचना आयोग में आज की तारीख में 55 हजार से ज्यादा मामले लम्बित हैं।
उसके बाद भी इन मामलों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। इस दौरान
येश्वर्याज सेवा संस्थान की ओर से यहां जनसुनवाई और जनजागरूकता कैंप भी
लगाया गया। इस धरने में काउंसलिंग ऑफ यूपी, ट्रैप संस्था अलीगढ, पीपल्स
फोरम, जन सूचना अधिकार जागरूकता मंच, समाज सेवा संस्थान और भागीदारी मंच
के सदस्यों ने हिस्सा लिया। Navbharat Times

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आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर धरना

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आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर धरना

Author: Satyamev India October 12, 2014
Uncategorized, उत्तर प्रदेश, एक्टिविस्ट न्यूज, देश, राज्य, समाचार
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आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान
धरना स्थल पर पूर्वान्ह 11 बजे से अपरान्ह 03 बजे तक संस्था 'येश्वर्याज
सेवा संस्थान' द्वारा जनसुनवाई और जनजागरूकता कैंप का आयोजन किया गया तो
वही लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के
मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर
कार्यशील संस्था 'तहरीर' द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के
निराशाजनक प्रदर्शन के विरोध में धरना और यूपी के हालिया कार्यरत 9 सूचना
आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट पर खुली
बहस की आरटीआई विशेषज्ञ ई० संजय शर्मा द्वारा दी गयी चुनौती के कार्यक्रम
का आयोजन एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु इनफार्मेशन , आरटीआई कॉउंसिल ऑफ़ यूपी ,
ट्रैप संस्था अलीगढ , सूचना का अधिकार कार्यकर्ता एसोसिएशन, पीपल्स फोरम,
मानव विकास सेवा समिति मुरादाबाद , जन सूचना अधिकार जागरूकता
मंच,भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच , एसआरपीडी मेमोरियल समाज सेवा संस्थान
, आल इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स एंड शैडयूल्ड ट्राइब्स एम्पलाइज वेलफेयर
एसोसिएशन, भागीदारी मंच, सार्वजनिक जबाबदेही भारत निर्माण मंच आदि
संगठनों के साथ संयुक्त रूप से किया गया l कार्यक्रम की अध्यक्षता तहरीर
संस्था के संस्थापक और अध्यक्ष ईo संजय शर्मा ने की l संजय शर्मा की
गिनती देश के मूर्धन्य आरटीआई विशेषज्ञों में होती है और उत्तर प्रदेश
में आरटीआई के क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता का लोहा प्रदेश के सभी आरटीआई
कार्यकर्ता मानते हैं lकार्यक्रम में प्रतिभागी संगठनों के प्रतिनिधियों
के साथ साथ उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने
प्रतिभाग किया l कैंप में आरटीआई विशेषज्ञों ने लोगों को आरटीआई के
जनोपयोगी प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया तो वही जनसुनवाई में
जनसूचना अधिकारी, अपीलीय प्राधिकारी और सूचना आयोग की आरटीआई एक्ट के
क्रियान्वयन के प्रति उदासीनता से व्यथित लोगों ने अपनी समस्याएं आरटीआई
विशेषज्ञों के साथ साझा कर समस्याओ के समाधान के सम्बन्ध में मार्गदर्शन
प्राप्त किया l संयुक्त कार्यक्रम के प्रतिभागियों ने अपनी मांगों के
सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को सम्बोधित एक मांगपत्र
हस्ताक्षरित कर प्रेषित किया l कार्यक्रम में कामनवेल्थ ह्यूमन राइट्स
इनिशिएटिव नई दिल्ली की ओर से येश्वर्याज को निःशुल्क उपलब्ध कराई गयी
आरटीआई गाइड का भी निःशुल्क वितरण किया गया l
इस सम्बन्ध में बात करते हुए संजय शर्मा ने बताया कि लोक जीवन में
पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के
संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था
'तहरीर' को प्राप्त प्रमाणों के आधार पर उन्हें यह कहने में कोई गुरेज
नहीं है कि सूचना आयुक्तों की अक्षमता के कारण ही आरटीआई के तहत सूचना
दिलाने बाली संस्था सूचना आयोग ही आज सूचना दिलाने के मार्ग की सबसे बड़ी
वाधा बन गयी है l संजय ने कहा कि इन सूचना आयुक्तों की पोल-पट्टी खोलकर
इनकी हकीकत संसार के सामने लाने के लिए ही उन्होंने यूपी के हालिया
कार्यरत 9 सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के
सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती दी है और कहा कि इन आयुक्तों से हार
जाने की दशा में उन्होंने इन आयुक्तों द्वारा मुक़र्रर सजाये मौत तक की हर
सजा को स्वीकारने का वादा भी किया है l संजय ने बताया कि चुनौती के
सम्बन्ध में उन्होंने राज्य सूचना आयोग को 2 ई-मेल दिनांक 09-10-14 और
10-10-14 को प्रेषित करने के साथ साथ उत्तर प्रदेश के राज्य सूचना आयोग
के सचिव के कार्यालय में दिनांक 10-10-14 को एक तीन पेज का चुनौती पत्र
व्यक्तिगत रूप से आयोग जाकर भी प्राप्त करा दिया है l संजय ने बताया कि
उनके आंकलन के अनुसार उत्तर प्रदेश के वर्तमान सूचना आयुक्तों में से कोई
भी सूचना आयुक्त पद के लिए निर्धारित योग्यताओं में से 10% भी योग्यता
धारित नहीं करते है l संजय बताते हैं कि प्रदेश के सूचना आयुक्त का पद
मुख्य सचिव के समकक्ष है और एक सवाल उठाते हैं कि क्या यह माना जा सकता
है कि जिस कार्यालय में योग्यतानुसार नियुक्त 9 मुख्य सचिव कार्यरत हों
वहां ऐसी भयंकर बदहाली व्याप्त हो जबकि मात्र 1 मुख्य सचिव पूरा सूबा
संभालता है ? इस सबाल का जबाब देते हुए संजय कहते हैं कि ऐसा इसलिए है
क्योंकि वर्तमान में नियुक्त सभी सूचना आयुक्त नितांत अयोग्य हैं और वे
मात्र अपने राजनैतिक संबंधों के चलते ही यह महत्वपूर्ण पद पा गए हैं l
बौद्धिक असम्बेदनशीलता , अक्षमता और अपने राजनैतिक आकाओं के दबाब के चलते
ही वे अपने पद की गरिमा के अनुकूल कार्य नहीं कर पा रहे हैं और इस उच्च
पद को कलंकित कर रहे हैं l
आरटीआई विशेषज्ञ संजय शर्मा ने बताया कि उनकी खुली बहस की चुनौती पर आज
यूपी का कोई भी सूचना आयुक्तसामने नहीं आया l संजय ने अब अयोग्य सूचना
आयुक्तों की नियुक्तियां रद्द कराने को उच्च न्यायालय में याचिका दायर
करने का निर्णय लिया है l
आरटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा के अनुसार उत्तर प्रदेश सूचना आयोग स्वयं
ही आरटीआई एक्ट का विनाश करने में लगा है l उर्वशी ने कहा कि यह
दुर्भाग्यपूर्ण है कि नौ सूचना आयुक्त नियुक्त होने के बाबजूद आयोग में
55000 से अधिक वाद लंबित हैं जो पूरे देश के सभी सूचना आयोगों में
सर्वाधिक हैं l नौ सालों में आयोग की नियमावली तक नहीं लागू हो पाई है और
आयोग का हर कार्मिक मनमाने रूप से स्व घोषित नियमों के अनुसार कार्य कर
रहा है जिसके कारण उत्तर प्रदेश में लागू होने के 9 वर्षों में ही सूचना
का अधिकार लगभग मृतप्राय हो चुका है l
यूपी के राज्य सूचना आयोग के खिलाफ लामबंद हुए संगठनों ने एक सुर से
सूचना आयुक्तों द्वारा आयुक्त पद ग्रहण करने के बाद से अब तक की अवधि में
चल-अचल सम्पत्तियों में किये गए निवेशों को सार्वजनिक कराने, यूपी के
अक्षम सूचना आयुक्तों को तत्काल निलंबित कर के उनके अब तक के कार्यों की
विधिक समीक्षा कराकर इनके विरुद्ध कार्यवाही कराने , सूचना आयुक्तों के
रिक्त पदों पर पद की योग्यतानुसार पारदर्शी प्रक्रिया से सूचना आयुक्तों
की नियुक्ति कराने , 55000 से अधिक लम्वित वादों की विशेष सुनवाईयां
शनिवार और रविवार के अवकाश के दिनों में कराने, आयोग की नियमावली तत्काल
लागू कराने,आयोग में नयी अपीलों और शिकायतों के प्राप्त होने के 1 सप्ताह
के अंदर प्रथम सुनवाई कराने, आदेशों की नक़ल आदेश होने के 1 सप्ताह के
अंदर आयोग की वेबसाइट पर अपलोड कराने, सूचना आयोग में रिश्वत मांगे जाने
की शिकायतें करने के लिए एक सतर्कता अधिकारी नियुक्त कराने , अपीलों और
शिकायतों की सुनवाई की अगली तारीखें अधिकतम 30 दिन बाद की देने,सूचना
आयुक्तों और नागरिकों/ आरटीआई कार्यकर्ताओं के पारस्परिक संवाद की
प्रणाली विकसित करके प्रतिमाह एक बैठक कराने, आरटीआई कार्यकर्ताओं को
जनहित के लिए सूचना मांगने को प्रेरित करने का तंत्र विकसित कराने ,
सूचना आयोग में वादियों के मानवाधिकारों को संरक्षित रखने हेतु उनको खड़ा
कर के सुनवाई करने के स्थान पर कुर्सी पर बैठाकर सुनवाई कराने , वादियों
को झूठे मामलों में फसाए जाने की स्थिति में अपना समुचित वचाव करने के
लिए वादी द्वारा मांगे जाने पर आयोग की सीसीटीवी फुटेज तत्काल उपलब्ध
कराने, आयुक्तों द्वारा पारित आदेश लोकप्राधिकारियों की सुविधानुसार
बदलने की प्रवृत्ति रोकने के लिए आयुक्त के स्टेनो की शॉर्टहैंड बुक पर
पेंसिल के स्थान पर पेन से लिखना अनिवार्य करने तथा शॉर्टहैंड बुक पर
उपस्थित वादी और प्रतिवादी के हस्ताक्षर कराने , आयुक्तों द्वारा
दण्डादेशों को बापस लेने के असंवैधानिक कारनामों पर तत्काल रोक लगाने,
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकथाम कानून के तहत तत्काल समिति बनाकर इस
समिति द्वारा अब तक सूचना आयुक्तों के विरुद्ध महिलाओं द्वारा की गयी
उत्पीड़न की शिकायतों की तत्काल जांच कराने, आयोग के कार्यालयीन कार्यों
की लिखित प्रक्रिया बनाये जाने, आयोग के द्वारा सम्पादित कार्यों की
मासिक रिपोर्ट तैयार कराकर स्वतः ही सार्वजनिक कराने आदि मांगों के साथ
धरना देते हुए राज्यपाल को एक ज्ञापन भी प्रेषित किया l
कार्यक्रम का समापन करते हुए येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव उर्वशी
शर्मा ने सभी आगंतुकों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए 3 माह में उनकी
मांगें न माने जाने पर प्रदेश के अन्य सभी संगठनों को साथ लेकर सूचना
आयोग और प्रदेश सरकार के खिलाफ वृहद स्तर पर उग्र आंदोलन करने को तैयार
रहने का आव्हान किया l

--
-Sincerely Yours,

Urvashi Sharma
Secretary - YAISHWARYAJ SEVA SANSTHAAN
101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
Rajajipuram,Lucknow-226017,Uttar Pradesh,India
Contact 9369613513
Right to Information Helpline 8081898081
Helpline Against Corruption 9455553838


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आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर धरना

http://www.newstodaytime.com/2014/10/blog-post_84.html

आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर धरना
Written By Bureau News on Monday, October 13, 2014 | 2:33 PM
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लखनऊ।। आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण मेला
मैदान धरना स्थल पर पूर्वान्ह 11 बजे से अपरान्ह 03 बजे तक संस्था
'येश्वर्याज सेवा संस्थान' द्वारा जनसुनवाई और जनजागरूकता कैंप का आयोजन
किया गया तो वही लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और
आमजन के मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर
पर कार्यशील संस्था 'तहरीर' द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के
निराशाजनक प्रदर्शन के विरोध में धरना और यूपी के हालिया कार्यरत 9 सूचना
आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट पर खुली
बहस की आरटीआई विशेषज्ञ ई० संजय शर्मा द्वारा दी गयी चुनौती के कार्यक्रम
का आयोजन एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु इनफार्मेशन, आरटीआई कॉउंसिल ऑफ़ यूपी,
ट्रैप संस्था अलीगढ, सूचना का अधिकार कार्यकर्ता एसोसिएशन, पीपल्स फोरम,
मानव विकास सेवा समिति मुरादाबाद, जन सूचना अधिकार जागरूकता मंच,
भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच, एसआरपीडी मेमोरियल समाज सेवा संस्थान, आल
इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स एंड शैडयूल्ड ट्राइब्स एम्पलाइज वेलफेयर
एसोसिएशन, भागीदारी मंच, सार्वजनिक जबाबदेही भारत निर्माण मंच आदि
संगठनों के साथ संयुक्त रूप से किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता तहरीर
संस्था के संस्थापक और अध्यक्ष ईo संजय शर्मा ने की। संजय शर्मा की गिनती
देश के मूर्धन्य आरटीआई विशेषज्ञों में होती है और उत्तर प्रदेश में
आरटीआई के क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता का लोहा प्रदेश के सभी आरटीआई
कार्यकर्ता मानते हैं। कार्यक्रम में प्रतिभागी संगठनों के प्रतिनिधियों
के साथ साथ उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने
प्रतिभाग किया l कैंप में आरटीआई विशेषज्ञों ने लोगों को आरटीआई के
जनोपयोगी प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया तो वही जनसुनवाई में
जनसूचना अधिकारी, अपीलीय प्राधिकारी और सूचना आयोग की आरटीआई एक्ट के
क्रियान्वयन के प्रति उदासीनता से व्यथित लोगों ने अपनी समस्याएं आरटीआई
विशेषज्ञों के साथ साझा कर समस्याओ के समाधान के सम्बन्ध में मार्गदर्शन
प्राप्त किया। संयुक्त कार्यक्रम के प्रतिभागियों ने अपनी मांगों के
सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को सम्बोधित एक मांगपत्र
हस्ताक्षरित कर प्रेषित किया l कार्यक्रम में कामनवेल्थ ह्यूमन राइट्स
इनिशिएटिव नई दिल्ली की ओर से येश्वर्याज को निःशुल्क उपलब्ध कराई गयी
आरटीआई गाइड का भी निःशुल्क वितरण किया गया।
इस सम्बन्ध में बात करते हुए संजय शर्मा ने बताया कि लोक जीवन में
पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के
संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था
'तहरीर' को प्राप्त प्रमाणों के आधार पर उन्हें यह कहने में कोई गुरेज
नहीं है कि सूचना आयुक्तों की अक्षमता के कारण ही आरटीआई के तहत सूचना
दिलाने बाली संस्था सूचना आयोग ही आज सूचना दिलाने के मार्ग की सबसे बड़ी
वाधा बन गयी है। संजय ने कहा कि इन सूचना आयुक्तों की पोल-पट्टी खोलकर
इनकी हकीकत संसार के सामने लाने के लिए ही उन्होंने यूपी के हालिया
कार्यरत 9 सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के
सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती दी है और कहा कि इन आयुक्तों से हार
जाने की दशा में उन्होंने इन आयुक्तों द्वारा मुक़र्रर सजाये मौत तक की हर
सजा को स्वीकारने का वादा भी किया है l संजय ने बताया कि चुनौती के
सम्बन्ध में उन्होंने राज्य सूचना आयोग को 2 ई-मेल दिनांक 09-10-14 और
10-10-14 को प्रेषित करने के साथ साथ उत्तर प्रदेश के राज्य सूचना आयोग
के सचिव के कार्यालय में दिनांक 10-10-14 को एक तीन पेज का चुनौती पत्र
व्यक्तिगत रूप से आयोग जाकर भी प्राप्त करा दिया है। संजय ने बताया कि
उनके आंकलन के अनुसार उत्तर प्रदेश के वर्तमान सूचना आयुक्तों में से कोई
भी सूचना आयुक्त पद के लिए निर्धारित योग्यताओं में से 10% भी योग्यता
धारित नहीं करते है। संजय बताते हैं कि प्रदेश के सूचना आयुक्त का पद
मुख्य सचिव के समकक्ष है और एक सवाल उठाते हैं कि क्या यह माना जा सकता
है कि जिस कार्यालय में योग्यतानुसार नियुक्त 9 मुख्य सचिव कार्यरत हों
वहां ऐसी भयंकर बदहाली व्याप्त हो जबकि मात्र 1 मुख्य सचिव पूरा सूबा
संभालता है ? इस सबाल का जबाब देते हुए संजय कहते हैं कि ऐसा इसलिए है
क्योंकि वर्तमान में नियुक्त सभी सूचना आयुक्त नितांत अयोग्य हैं और वे
मात्र अपने राजनैतिक संबंधों के चलते ही यह महत्वपूर्ण पद पा गए हैं।
बौद्धिक असम्बेदनशीलता , अक्षमता और अपने राजनैतिक आकाओं के दबाब के चलते
ही वे अपने पद की गरिमा के अनुकूल कार्य नहीं कर पा रहे हैं और इस उच्च
पद को कलंकित कर रहे हैं।
आरटीआई विशेषज्ञ संजय शर्मा ने बताया कि उनकी खुली बहस की चुनौती पर
आज यूपी का कोई भी सूचना आयुक्तसामने नहीं आया। संजय ने अब अयोग्य सूचना
आयुक्तों की नियुक्तियां रद्द कराने को उच्च न्यायालय में याचिका दायर
करने का निर्णय लिया है।
आरटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा के अनुसार उत्तर प्रदेश सूचना आयोग
स्वयं ही आरटीआई एक्ट का विनाश करने में लगा है। उर्वशी ने कहा कि यह
दुर्भाग्यपूर्ण है कि नौ सूचना आयुक्त नियुक्त होने के बाबजूद आयोग में
55000 से अधिक वाद लंबित हैं जो पूरे देश के सभी सूचना आयोगों में
सर्वाधिक हैं। नौ सालों में आयोग की नियमावली तक नहीं लागू हो पाई है और
आयोग का हर कार्मिक मनमाने रूप से स्व घोषित नियमों के अनुसार कार्य कर
रहा है जिसके कारण उत्तर प्रदेश में लागू होने के 9 वर्षों में ही सूचना
का अधिकार लगभग मृतप्राय हो चुका है।
यूपी के राज्य सूचना आयोग के खिलाफ लामबंद हुए संगठनों ने एक सुर से
सूचना आयुक्तों द्वारा आयुक्त पद ग्रहण करने के बाद से अब तक की अवधि में
चल-अचल सम्पत्तियों में किये गए निवेशों को सार्वजनिक कराने, यूपी के
अक्षम सूचना आयुक्तों को तत्काल निलंबित कर के उनके अब तक के कार्यों की
विधिक समीक्षा कराकर इनके विरुद्ध कार्यवाही कराने, सूचना आयुक्तों के
रिक्त पदों पर पद की योग्यतानुसार पारदर्शी प्रक्रिया से सूचना आयुक्तों
की नियुक्ति कराने, 55000 से अधिक लम्वित वादों की विशेष सुनवाईयां
शनिवार और रविवार के अवकाश के दिनों में कराने, आयोग की नियमावली तत्काल
लागू कराने,आयोग में नयी अपीलों और शिकायतों के प्राप्त होने के 1 सप्ताह
के अंदर प्रथम सुनवाई कराने, आदेशों की नक़ल आदेश होने के 1 सप्ताह के
अंदर आयोग की वेबसाइट पर अपलोड कराने, सूचना आयोग में रिश्वत मांगे जाने
की शिकायतें करने के लिए एक सतर्कता अधिकारी नियुक्त कराने, अपीलों और
शिकायतों की सुनवाई की अगली तारीखें अधिकतम 30 दिन बाद की देने,सूचना
आयुक्तों और नागरिकों/आरटीआई कार्यकर्ताओं के पारस्परिक संवाद की प्रणाली
विकसित करके प्रतिमाह एक बैठक कराने, आरटीआई कार्यकर्ताओं को जनहित के
लिए सूचना मांगने को प्रेरित करने का तंत्र विकसित कराने, सूचना आयोग में
वादियों के मानवाधिकारों को संरक्षित रखने हेतु उनको खड़ा कर के सुनवाई
करने के स्थान पर कुर्सी पर बैठाकर सुनवाई कराने, वादियों को झूठे मामलों
में फसाए जाने की स्थिति में अपना समुचित वचाव करने के लिए वादी द्वारा
मांगे जाने पर आयोग की सीसीटीवी फुटेज तत्काल उपलब्ध कराने, आयुक्तों
द्वारा पारित आदेश लोकप्राधिकारियों की सुविधानुसार बदलने की प्रवृत्ति
रोकने के लिए आयुक्त के स्टेनो की शॉर्टहैंड बुक पर पेंसिल के स्थान पर
पेन से लिखना अनिवार्य करने तथा शॉर्टहैंड बुक पर उपस्थित वादी और
प्रतिवादी के हस्ताक्षर कराने , आयुक्तों द्वारा दण्डादेशों को बापस लेने
के असंवैधानिक कारनामों पर तत्काल रोक लगाने, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न
रोकथाम कानून के तहत तत्काल समिति बनाकर इस समिति द्वारा अब तक सूचना
आयुक्तों के विरुद्ध महिलाओं द्वारा की गयी उत्पीड़न की शिकायतों की
तत्काल जांच कराने, आयोग के कार्यालयीन कार्यों की लिखित प्रक्रिया बनाये
जाने, आयोग के द्वारा सम्पादित कार्यों की मासिक रिपोर्ट तैयार कराकर
स्वतः ही सार्वजनिक कराने आदि मांगों के साथ धरना देते हुए राज्यपाल को
एक ज्ञापन भी प्रेषित किया।
कार्यक्रम का समापन करते हुए येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव उर्वशी
शर्मा ने सभी आगंतुकों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए 3 माह में उनकी
मांगें न माने जाने पर प्रदेश के अन्य सभी संगठनों को साथ लेकर सूचना
आयोग और प्रदेश सरकार के खिलाफ वृहद स्तर पर उग्र आंदोलन करने को तैयार
रहने का आव्हान किया।


--
-Sincerely Yours,

Urvashi Sharma
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101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
Rajajipuram,Lucknow-226017,Uttar Pradesh,India
Contact 9369613513
Right to Information Helpline 8081898081
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that i should delete your name from my mailing list.

सामाजिक कार्यकर्ता, आरटीआई विशेषज्ञ और ‘तहरीर’ के संस्थापक अध्यक्ष संजय शर्मा ने वर्तमान सूचना आयुक्तों से एक साथ या अकेले-अकेले खुली बहस करने की चुनौती दी

दस साल में निकला दम
फरजंद अहमद, पूर्व सूचना आयुक्त, बिहार
First Published:12-10-14 09:10 PM
Last Updated:12-10-14 09:10 PM
http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/guestcolumn/article1-Well-known-British-poet-scholar-Richard-Garnet-50-62-456122.html

जाने-माने ब्रिटिश कवि और स्कॉलर रिचर्ड गारनेट ने एक बार कहा था कि हर
परदे की ख्वाहिश होती है कि कोई उसे बेपरदा करे, सिवाय पाखंड के परदे का।
पाखंड का परदा व्यवस्था के चेहरे से उठे या न उठे, मगर सूचना के अधिकार
का इस्तेमाल करने वालों के बीच फैलता खौफ और सरकारी कामकाज में
पारदर्शिता की गारंटी देने वाला सूचना अधिकार कानून खुद पाखंड के परदे के
भीतर दम तोड़ रहा है। आज आरटीआई की दसवीं वर्षगांठ है, मगर पहली बार
केंद्रीय सूचना आयोग में न तो कोई शिकवा-शिकायत करने वाला होगा और न ही
सूचना का अधिकार, यानी सनशाइन कानून पर मंडराते स्याह बादलों पर कोई
चर्चा होगी। केवल बंद कमरे में एक औपचारिकता पूरी की जाएगी, क्योंकि
केंद्रीय सूचना आयोग में फिलहाल कोई मुख्य सूचना आयुक्त नहीं। पहले
राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री इसका उद्घाटन करते थे और सरकार की नजर में इस
कानून की कमजोरियों या उपलब्धि पर बहस की शुरुआत करते थे, लेकिन नई सरकार
को इतनी फुरसत नहीं मिली कि वह मुख्य सूचना आयुक्त नियुक्त कर सके।

जो कानून अब तक जनता के हाथ में एक धारदार हथियार था, प्रजातंत्र के लिए
ऑक्सीजन था, उस हथियार की धार दस वर्षों में ही कुंद हो चुकी है। सरकारें
या प्रशासन हर आवेदक को शक की नजरों से देखते हैं, इसलिए लोक सूचना
पदाधिकारी सूचना देने से कतराते हैं या फिर उन्हें दौड़ाते रहते हैं।
नतीजा यह है कि वादों का अंबार आकाश छू रहा है। आवेदक अपनी अपील लेकर
आयोग का चक्कर काटते-काटते थकते जा रहे हैं। युवा सामाजिक कार्यकर्ता
उत्कर्ष सिन्हा को लगता है कि अब हर आवेदक राग दरबारी का बेबस लंगड़
बनकर रह जाएगा, जिसने पूरी जिंदगी एक दस्तावेज की नकल के लिए गंवा दी थी।
आरटीआई असेसमेंट और एडवोकेसी ग्रुप और समय-सेंटर फॉर इक्विटीज के अनुसार,
आज सूचना आयोगों में करीब दो लाख वाद सुनवाई के लिए तरस रहे हैं। अध्ययन
के अनुसार, मध्य प्रदेश में यदि आज कोई अपील दाखिल करता है, तो 60 साल
बाद उसका नंबर आएगा। वहीं पश्चिम बंगाल में उसे 17 साल, राजस्थान में तीन
साल, असम और केरल में दो साल इंतजार करना होगा। खुद केंद्रीय सूचना आयोग
में 26,115 मामले लंबित हैं।

अध्ययन के अनुसार, सबसे अधिक मामले सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में
लंबित हैं। इनकी संख्या 48,442 है, जबकि महाराष्ट्र सूचना मांगने वालों
की हत्या और उत्पीड़न में पूरे देश में अव्वल नंबर पर है। कॉमनवेल्थ
ह्यूमन राइट इनीशिएटिव के अनुसार, महाराष्ट्र में अब तक 53 आवेदकों पर
जानलेवा हमले हो चुके हैं, जिनमें नौ लोगों की जान जा चुकी है, जबकि
बिहार में छह लोग सूचना मांगने के कारण मारे गए हैं। जाने-माने आरटीआई
एक्टिविस्ट शिव प्रकाश राय (जिन्होंने सूचना मांगने के कारण झूठे मामले
में कई महीने जेल में गुजारे थे) के अनुसार, बिहार में आवेदकों पर अब
हमले कुछ कम इसलिए हो रहे हैं, क्योंकि दहशत के कारण लोग सूचना मांगने के
पहले कई बार सोचते हैं। महाराष्ट्र के बाद गुजरात का नंबर आता है, जहां
34 कार्यकर्ताओं पर हमले हो चुके हैं। उनमें से तीन मारे जा चुके हैं।

मगर उत्तर प्रदेश में सूचना की बदहाली नई मिसाल कायम कर रही है। यहां
फिलहाल नौ सूचना आयुक्त हैं, जिनकी काबिलियत और उदासीनता पर चर्चा चल रही
है। अन्य संस्थानों के साथ-साथ एक्टिविस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता उर्वशी
शर्मा ने यूपी के सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए नौ
आयुक्तों को खुली बहस की चुनौती दी है। सामाजिक कार्यकर्ता, आरटीआई
विशेषज्ञ और 'तहरीर' के संस्थापक अध्यक्ष संजय शर्मा ने भी वर्तमान सूचना
आयुक्तों से एक साथ अकेले या खुली बहस करने की चुनौती दी है। पिछले तीन
वर्षों से केंद्र सरकार सूचना का अधिकार कानून को नई ताकत देने के नाम पर
इसे कमजोर करने का काम कर रही थी। साल 2011 में केंद्रीय सूचना आयोग ने
तत्कालीन राष्ट्रपति (प्रतिभा पाटिल) को अपनी संपत्ति का ब्योरा देने का
आदेश दिया था। उन्हीं दिनों 2-जी स्पेक्ट्रम के संबंध में तत्कालीन वित्त
मंत्री प्रणब मुखर्जी (अब राष्ट्रपति) की फाइल टिप्पणी को सरेआम करना
पड़ा था। फिर रॉबर्ट वाड्रा की लैंड डील का मामला आरटीआई के माध्यम से
उछला।

इन सबका असर सरकार पर दिखाई पड़ा। 15 अक्तूबर, 2011 को केंद्रीय सूचना
आयोग के सालाना सम्मलेन में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था
कि अब हमें सूचना के अधिकार कानून पर आलोचनात्मक रुख अपनाना होगा..,
आरटीआई का सरकारी विचार-विमर्श की प्रक्रिया पर उल्टा असर नहीं पड़ना
चाहिए। फिर अगले साल 12 अक्तूबर, 2012 को मनमोहन सिंह ने कहा कि निजता का
उल्लंघन करने वाली बेहूदा और परेशान करने वाली आरटीआई आवेदनों को लेकर
चिंता पैदा हो रही है। ठीक इसके बाद ही खबर आई थी कि केंद्र सरकार ने यह
फैसला किया है कि वह एक समिति गठित कर यह पता लगाएगी कि सूचना एकत्र करने
और देने पर सरकार का कितना खर्च आता है।

इस तरह की बात सूचना के अधिकार अधिनियम की आत्मा के खिलाफ है, क्योंकि इस
कानून की धारा 7(3) साफ तौर पर कहती कि सूचना की कॉपी पर खर्च आवेदक को
ही वहन करना होगा। साफ है कि दस साल के भीतर ही इसे कमजोर करने की कवायद
शुरू हो चुकी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के कई
फैसलों ने आवेदकों के बीच खलबली मचा दी थी। दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने
एक फैसला सुनाया था कि हर सूचना आयोग दो-आयुक्तों का पीठ होगा, जिसमें एक
हाई कोर्ट के जज होंगे। मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर कोई जज ही होगा। इस
आदेश के बाद कई राज्य आयोग का कामकाज बंद हो गया। बाद में खुद सुप्रीम
कोर्ट ने इस फैसले को 'मिस्टेक ऑफ लॉ' कहकर वापस ले लिया। बिहार सहित कई
राज्यों में धारा 20 के तहत लगाए गए दंड की सही तरीके से वसूली नहीं
होती, जिसके कारण लोक सूचना पदाधिकारियों का मनोबल बढ़ता जा रहा है और
आवेदक भटक रहे हैं। आज दुनिया के लगभग 100 देशों में सूचना का अधिकार
कानून लागू है। दक्षिण एशिया में भारत का कानून सबसे कारगर था, क्योंकि
खुद कार्यकर्ताओं ने इसकी रचना की थी और केंद्र सरकार ने भी इसे लागू
करने में खासी दिलचस्पी दिखाई थी। मगर अब जब सूचना का अधिकार कानून खुद
सरकारों के गले की हड्डी बन चुका है, तब कौन बचाए इसे?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)


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Urvashi Sharma
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उत्तर प्रदेश में सूचना की बदहाली नई मिसाल कायम कर रही है। यहां फिलहाल नौ सूचना आयुक्त हैं, जिनकी काबिलियत और उदासीनता पर चर्चा चल रही है। अन्य संस्थानों के साथ-साथ एक्टिविस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता उर्वशी शर्मा ने यूपी के सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए नौ आयुक्तों को खुली बहस की चुनौती दी है। सामाजिक कार्यकर्ता, आरटीआई विशेषज्ञ और ‘तहरीर’ के संस्थापक अध्यक्ष संजय शर्मा ने भी वर्तमान सूचना आयुक्तों से एक साथ अकेले या खुली बहस करने की चुनौती दी है।

दस साल में निकला दम
http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/guestcolumn/article1-Well-known-British-poet-scholar-Richard-Garnet-50-62-456122.html
फरजंद अहमद, पूर्व सूचना आयुक्त, बिहार
First Published:12-10-14 09:10 PM
Last Updated:12-10-14 09:10 PM
जाने-माने ब्रिटिश कवि और स्कॉलर रिचर्ड गारनेट ने एक बार कहा था कि हर
परदे की ख्वाहिश होती है कि कोई उसे बेपरदा करे, सिवाय पाखंड के परदे का।
पाखंड का परदा व्यवस्था के चेहरे से उठे या न उठे, मगर सूचना के अधिकार
का इस्तेमाल करने वालों के बीच फैलता खौफ और सरकारी कामकाज में
पारदर्शिता की गारंटी देने वाला सूचना अधिकार कानून खुद पाखंड के परदे के
भीतर दम तोड़ रहा है। आज आरटीआई की दसवीं वर्षगांठ है, मगर पहली बार
केंद्रीय सूचना आयोग में न तो कोई शिकवा-शिकायत करने वाला होगा और न ही
सूचना का अधिकार, यानी सनशाइन कानून पर मंडराते स्याह बादलों पर कोई
चर्चा होगी। केवल बंद कमरे में एक औपचारिकता पूरी की जाएगी, क्योंकि
केंद्रीय सूचना आयोग में फिलहाल कोई मुख्य सूचना आयुक्त नहीं। पहले
राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री इसका उद्घाटन करते थे और सरकार की नजर में इस
कानून की कमजोरियों या उपलब्धि पर बहस की शुरुआत करते थे, लेकिन नई सरकार
को इतनी फुरसत नहीं मिली कि वह मुख्य सूचना आयुक्त नियुक्त कर सके।

जो कानून अब तक जनता के हाथ में एक धारदार हथियार था, प्रजातंत्र के लिए
ऑक्सीजन था, उस हथियार की धार दस वर्षों में ही कुंद हो चुकी है। सरकारें
या प्रशासन हर आवेदक को शक की नजरों से देखते हैं, इसलिए लोक सूचना
पदाधिकारी सूचना देने से कतराते हैं या फिर उन्हें दौड़ाते रहते हैं।
नतीजा यह है कि वादों का अंबार आकाश छू रहा है। आवेदक अपनी अपील लेकर
आयोग का चक्कर काटते-काटते थकते जा रहे हैं। युवा सामाजिक कार्यकर्ता
उत्कर्ष सिन्हा को लगता है कि अब हर आवेदक राग दरबारी का बेबस लंगड़
बनकर रह जाएगा, जिसने पूरी जिंदगी एक दस्तावेज की नकल के लिए गंवा दी थी।
आरटीआई असेसमेंट और एडवोकेसी ग्रुप और समय-सेंटर फॉर इक्विटीज के अनुसार,
आज सूचना आयोगों में करीब दो लाख वाद सुनवाई के लिए तरस रहे हैं। अध्ययन
के अनुसार, मध्य प्रदेश में यदि आज कोई अपील दाखिल करता है, तो 60 साल
बाद उसका नंबर आएगा। वहीं पश्चिम बंगाल में उसे 17 साल, राजस्थान में तीन
साल, असम और केरल में दो साल इंतजार करना होगा। खुद केंद्रीय सूचना आयोग
में 26,115 मामले लंबित हैं।

अध्ययन के अनुसार, सबसे अधिक मामले सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में
लंबित हैं। इनकी संख्या 48,442 है, जबकि महाराष्ट्र सूचना मांगने वालों
की हत्या और उत्पीड़न में पूरे देश में अव्वल नंबर पर है। कॉमनवेल्थ
ह्यूमन राइट इनीशिएटिव के अनुसार, महाराष्ट्र में अब तक 53 आवेदकों पर
जानलेवा हमले हो चुके हैं, जिनमें नौ लोगों की जान जा चुकी है, जबकि
बिहार में छह लोग सूचना मांगने के कारण मारे गए हैं। जाने-माने आरटीआई
एक्टिविस्ट शिव प्रकाश राय (जिन्होंने सूचना मांगने के कारण झूठे मामले
में कई महीने जेल में गुजारे थे) के अनुसार, बिहार में आवेदकों पर अब
हमले कुछ कम इसलिए हो रहे हैं, क्योंकि दहशत के कारण लोग सूचना मांगने के
पहले कई बार सोचते हैं। महाराष्ट्र के बाद गुजरात का नंबर आता है, जहां
34 कार्यकर्ताओं पर हमले हो चुके हैं। उनमें से तीन मारे जा चुके हैं।

मगर उत्तर प्रदेश में सूचना की बदहाली नई मिसाल कायम कर रही है। यहां
फिलहाल नौ सूचना आयुक्त हैं, जिनकी काबिलियत और उदासीनता पर चर्चा चल रही
है। अन्य संस्थानों के साथ-साथ एक्टिविस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता उर्वशी
शर्मा ने यूपी के सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए नौ
आयुक्तों को खुली बहस की चुनौती दी है। सामाजिक कार्यकर्ता, आरटीआई
विशेषज्ञ और 'तहरीर' के संस्थापक अध्यक्ष संजय शर्मा ने भी वर्तमान सूचना
आयुक्तों से एक साथ अकेले या खुली बहस करने की चुनौती दी है। पिछले तीन
वर्षों से केंद्र सरकार सूचना का अधिकार कानून को नई ताकत देने के नाम पर
इसे कमजोर करने का काम कर रही थी। साल 2011 में केंद्रीय सूचना आयोग ने
तत्कालीन राष्ट्रपति (प्रतिभा पाटिल) को अपनी संपत्ति का ब्योरा देने का
आदेश दिया था। उन्हीं दिनों 2-जी स्पेक्ट्रम के संबंध में तत्कालीन वित्त
मंत्री प्रणब मुखर्जी (अब राष्ट्रपति) की फाइल टिप्पणी को सरेआम करना
पड़ा था। फिर रॉबर्ट वाड्रा की लैंड डील का मामला आरटीआई के माध्यम से
उछला।

इन सबका असर सरकार पर दिखाई पड़ा। 15 अक्तूबर, 2011 को केंद्रीय सूचना
आयोग के सालाना सम्मलेन में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था
कि अब हमें सूचना के अधिकार कानून पर आलोचनात्मक रुख अपनाना होगा..,
आरटीआई का सरकारी विचार-विमर्श की प्रक्रिया पर उल्टा असर नहीं पड़ना
चाहिए। फिर अगले साल 12 अक्तूबर, 2012 को मनमोहन सिंह ने कहा कि निजता का
उल्लंघन करने वाली बेहूदा और परेशान करने वाली आरटीआई आवेदनों को लेकर
चिंता पैदा हो रही है। ठीक इसके बाद ही खबर आई थी कि केंद्र सरकार ने यह
फैसला किया है कि वह एक समिति गठित कर यह पता लगाएगी कि सूचना एकत्र करने
और देने पर सरकार का कितना खर्च आता है।

इस तरह की बात सूचना के अधिकार अधिनियम की आत्मा के खिलाफ है, क्योंकि इस
कानून की धारा 7(3) साफ तौर पर कहती कि सूचना की कॉपी पर खर्च आवेदक को
ही वहन करना होगा। साफ है कि दस साल के भीतर ही इसे कमजोर करने की कवायद
शुरू हो चुकी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के कई
फैसलों ने आवेदकों के बीच खलबली मचा दी थी। दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने
एक फैसला सुनाया था कि हर सूचना आयोग दो-आयुक्तों का पीठ होगा, जिसमें एक
हाई कोर्ट के जज होंगे। मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर कोई जज ही होगा। इस
आदेश के बाद कई राज्य आयोग का कामकाज बंद हो गया। बाद में खुद सुप्रीम
कोर्ट ने इस फैसले को 'मिस्टेक ऑफ लॉ' कहकर वापस ले लिया। बिहार सहित कई
राज्यों में धारा 20 के तहत लगाए गए दंड की सही तरीके से वसूली नहीं
होती, जिसके कारण लोक सूचना पदाधिकारियों का मनोबल बढ़ता जा रहा है और
आवेदक भटक रहे हैं। आज दुनिया के लगभग 100 देशों में सूचना का अधिकार
कानून लागू है। दक्षिण एशिया में भारत का कानून सबसे कारगर था, क्योंकि
खुद कार्यकर्ताओं ने इसकी रचना की थी और केंद्र सरकार ने भी इसे लागू
करने में खासी दिलचस्पी दिखाई थी। मगर अब जब सूचना का अधिकार कानून खुद
सरकारों के गले की हड्डी बन चुका है, तब कौन बचाए इसे?

Sunday 12 October, 2014

आरटीआई विशेषज्ञ संजय की चुनौती पर सामने नहीं आया यूपी का कोई सूचना आयुक्त! अब अयोग्य सूचना आयुक्तों की नियुक्तियां रद्द कराने को उच्च न्यायालय में याचिका दायर करेंगे संजय l None of 9 info commissioners dared to accept RTI Expert Er. Sanjay Sharma's Challenge. "Shall adopt High Court Route to get the appointments of all 9 incapable info-commissioners of Uttar Pradesh nullified" asserts Sanjay.

प्रेस विज्ञप्ति ( प्रकाशनार्थ )Press Release ( for Publication/Circulation)

आरटीआई विशेषज्ञ संजय की चुनौती पर सामने नहीं आया यूपी का कोई सूचना
आयुक्त! अब अयोग्य सूचना आयुक्तों की नियुक्तियां रद्द कराने को उच्च
न्यायालय में याचिका दायर करेंगे संजय l None of 9 info commissioners
dared to accept RTI Expert Er. Sanjay Sharma's Challenge. "Shall adopt
High Court Route to get the appointments of all 9 incapable
info-commissioners of Uttar Pradesh nullified" asserts Sanjay.

आज आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान
धरना स्थल पर पूर्वान्ह 11 बजे से अपरान्ह 03 बजे तक संस्था 'येश्वर्याज
सेवा संस्थान' द्वारा जनसुनवाई और जनजागरूकता कैंप का आयोजन किया गया
तो वही लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के
मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर
कार्यशील संस्था 'तहरीर' द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के
निराशाजनक प्रदर्शन के विरोध में धरना और यूपी के हालिया कार्यरत 9
सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट
पर खुली बहस की आरटीआई विशेषज्ञ ई० संजय शर्मा द्वारा दी गयी चुनौती के
कार्यक्रम का आयोजन एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु इनफार्मेशन , आरटीआई
कॉउंसिल ऑफ़ यूपी , ट्रैप संस्था अलीगढ , सूचना का अधिकार कार्यकर्ता
एसोसिएशन, पीपल्स फोरम, मानव विकास सेवा समिति मुरादाबाद , जन सूचना
अधिकार जागरूकता मंच,भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच , एसआरपीडी मेमोरियल
समाज सेवा संस्थान , आल इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स एंड शैडयूल्ड ट्राइब्स
एम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन, भागीदारी मंच, सार्वजनिक जबाबदेही भारत
निर्माण मंच आदि संगठनों के साथ संयुक्त रूप से किया गया l कार्यक्रम
की अध्यक्षता तहरीर संस्था के संस्थापक और अध्यक्ष ईo संजय शर्मा ने की l
संजय शर्मा की गिनती देश के मूर्धन्य आरटीआई विशेषज्ञों में होती है और
उत्तर प्रदेश में आरटीआई के क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता का लोहा प्रदेश
के सभी आरटीआई कार्यकर्ता मानते हैं lकार्यक्रम में प्रतिभागी संगठनों के
प्रतिनिधियों के साथ साथ उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के सामाजिक
कार्यकर्ताओं ने प्रतिभाग किया l कैंप में आरटीआई विशेषज्ञों ने लोगों को
आरटीआई के जनोपयोगी प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया तो वही जनसुनवाई
में जनसूचना अधिकारी, अपीलीय प्राधिकारी और सूचना आयोग की आरटीआई एक्ट
के क्रियान्वयन के प्रति उदासीनता से व्यथित लोगों ने अपनी समस्याएं
आरटीआई विशेषज्ञों के साथ साझा कर समस्याओ के समाधान के सम्बन्ध में
मार्गदर्शन प्राप्त किया l संयुक्त कार्यक्रम के प्रतिभागियों ने अपनी
मांगों के सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को सम्बोधित एक
मांगपत्र हस्ताक्षरित कर प्रेषित किया l कार्यक्रम में कामनवेल्थ
ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव नई दिल्ली की ओर से येश्वर्याज को निःशुल्क
उपलब्ध कराई गयी आरटीआई गाइड का भी निःशुल्क वितरण किया गया l



इस सम्बन्ध में बात करते हुए संजय शर्मा ने बताया कि लोक जीवन में
पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के
संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था
'तहरीर' को प्राप्त प्रमाणों के आधार पर उन्हें यह कहने में कोई
गुरेज नहीं है कि सूचना आयुक्तों की अक्षमता के कारण ही आरटीआई के तहत
सूचना दिलाने बाली संस्था सूचना आयोग ही आज सूचना दिलाने के मार्ग की
सबसे बड़ी वाधा बन गयी है l संजय ने कहा कि इन सूचना आयुक्तों की
पोल-पट्टी खोलकर इनकी हकीकत संसार के सामने लाने के लिए ही उन्होंने
यूपी के हालिया कार्यरत 9 सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए
उनको कैमरे के सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती दी है और कहा कि इन
आयुक्तों से हार जाने की दशा में उन्होंने इन आयुक्तों द्वारा मुक़र्रर
सजाये मौत तक की हर सजा को स्वीकारने का वादा भी किया है l संजय ने बताया
कि चुनौती के सम्बन्ध में उन्होंने राज्य सूचना आयोग को 2 ई-मेल दिनांक
09-10-14 और 10-10-14 को प्रेषित करने के साथ साथ उत्तर प्रदेश के राज्य
सूचना आयोग के सचिव के कार्यालय में दिनांक 10-10-14 को एक तीन पेज का
चुनौती पत्र व्यक्तिगत रूप से आयोग जाकर भी प्राप्त करा दिया है l संजय
ने बताया कि उनके आंकलन के अनुसार उत्तर प्रदेश के वर्तमान सूचना
आयुक्तों में से कोई भी सूचना आयुक्त पद के लिए निर्धारित योग्यताओं में
से 10% भी योग्यता धारित नहीं करते है l संजय बताते हैं कि प्रदेश के
सूचना आयुक्त का पद मुख्य सचिव के समकक्ष है और एक सवाल उठाते हैं कि
क्या यह माना जा सकता है कि जिस कार्यालय में योग्यतानुसार नियुक्त 9
मुख्य सचिव कार्यरत हों वहां ऐसी भयंकर बदहाली व्याप्त हो जबकि मात्र 1
मुख्य सचिव पूरा सूबा संभालता है ? इस सबाल का जबाब देते हुए संजय कहते
हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि वर्तमान में नियुक्त सभी सूचना आयुक्त
नितांत अयोग्य हैं और वे मात्र अपने राजनैतिक संबंधों के चलते ही यह
महत्वपूर्ण पद पा गए हैं l बौद्धिक असम्बेदनशीलता , अक्षमता और अपने
राजनैतिक आकाओं के दबाब के चलते ही वे अपने पद की गरिमा के अनुकूल कार्य
नहीं कर पा रहे हैं और इस उच्च पद को कलंकित कर रहे हैं l



आरटीआई विशेषज्ञ संजय शर्मा ने बताया कि उनकी खुली बहस की चुनौती पर आज
यूपी का कोई भी सूचना आयुक्तसामने नहीं आया l संजय ने अब अयोग्य सूचना
आयुक्तों की नियुक्तियां रद्द कराने को उच्च न्यायालय में याचिका दायर
करने का निर्णय लिया है l



आरटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा के अनुसार उत्तर प्रदेश सूचना आयोग स्वयं
ही आरटीआई एक्ट का विनाश करने में लगा है l उर्वशी ने कहा कि यह
दुर्भाग्यपूर्ण है कि नौ सूचना आयुक्त नियुक्त होने के बाबजूद आयोग में
55000 से अधिक वाद लंबित हैं जो पूरे देश के सभी सूचना आयोगों में
सर्वाधिक हैं l नौ सालों में आयोग की नियमावली तक नहीं लागू हो पाई है
और आयोग का हर कार्मिक मनमाने रूप से स्व घोषित नियमों के अनुसार कार्य
कर रहा है जिसके कारण उत्तर प्रदेश में लागू होने के 9 वर्षों में ही
सूचना का अधिकार लगभग मृतप्राय हो चुका है l



यूपी के राज्य सूचना आयोग के खिलाफ लामबंद हुए संगठनों ने एक सुर से
सूचना आयुक्तों द्वारा आयुक्त पद ग्रहण करने के बाद से अब तक की अवधि में
चल-अचल सम्पत्तियों में किये गए निवेशों को सार्वजनिक कराने, यूपी के
अक्षम सूचना आयुक्तों को तत्काल निलंबित कर के उनके अब तक के कार्यों की
विधिक समीक्षा कराकर इनके विरुद्ध कार्यवाही कराने , सूचना आयुक्तों के
रिक्त पदों पर पद की योग्यतानुसार पारदर्शी प्रक्रिया से सूचना आयुक्तों
की नियुक्ति कराने , 55000 से अधिक लम्वित वादों की विशेष सुनवाईयां
शनिवार और रविवार के अवकाश के दिनों में कराने, आयोग की नियमावली तत्काल
लागू कराने,आयोग में नयी अपीलों और शिकायतों के प्राप्त होने के 1
सप्ताह के अंदर प्रथम सुनवाई कराने, आदेशों की नक़ल आदेश होने के 1 सप्ताह
के अंदर आयोग की वेबसाइट पर अपलोड कराने, सूचना आयोग में रिश्वत मांगे
जाने की शिकायतें करने के लिए एक सतर्कता अधिकारी नियुक्त कराने , अपीलों
और शिकायतों की सुनवाई की अगली तारीखें अधिकतम 30 दिन बाद की देने,सूचना
आयुक्तों और नागरिकों/ आरटीआई कार्यकर्ताओं के पारस्परिक संवाद की
प्रणाली विकसित करके प्रतिमाह एक बैठक कराने, आरटीआई कार्यकर्ताओं को
जनहित के लिए सूचना मांगने को प्रेरित करने का तंत्र विकसित कराने ,
सूचना आयोग में वादियों के मानवाधिकारों को संरक्षित रखने हेतु उनको खड़ा
कर के सुनवाई करने के स्थान पर कुर्सी पर बैठाकर सुनवाई कराने ,
वादियों को झूठे मामलों में फसाए जाने की स्थिति में अपना समुचित वचाव
करने के लिए वादी द्वारा मांगे जाने पर आयोग की सीसीटीवी फुटेज तत्काल
उपलब्ध कराने, आयुक्तों द्वारा पारित आदेश लोकप्राधिकारियों की
सुविधानुसार बदलने की प्रवृत्ति रोकने के लिए आयुक्त के स्टेनो की
शॉर्टहैंड बुक पर पेंसिल के स्थान पर पेन से लिखना अनिवार्य करने तथा
शॉर्टहैंड बुक पर उपस्थित वादी और प्रतिवादी के हस्ताक्षर कराने ,
आयुक्तों द्वारा दण्डादेशों को बापस लेने के असंवैधानिक कारनामों पर
तत्काल रोक लगाने, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकथाम कानून के तहत तत्काल
समिति बनाकर इस समिति द्वारा अब तक सूचना आयुक्तों के विरुद्ध महिलाओं
द्वारा की गयी उत्पीड़न की शिकायतों की तत्काल जांच कराने, आयोग के
कार्यालयीन कार्यों की लिखित प्रक्रिया बनाये जाने, आयोग के द्वारा
सम्पादित कार्यों की मासिक रिपोर्ट तैयार कराकर स्वतः ही सार्वजनिक
कराने आदि मांगों के साथ धरना देते हुए राज्यपाल को एक ज्ञापन भी प्रेषित
किया l


कार्यक्रम का समापन करते हुए येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव उर्वशी
शर्मा ने सभी आगंतुकों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए 3 माह में उनकी
मांगें न माने जाने पर प्रदेश के अन्य सभी संगठनों को साथ लेकर सूचना
आयोग और प्रदेश सरकार के खिलाफ वृहद स्तर पर उग्र आंदोलन करने को तैयार
रहने का आव्हान किया l




--
-Sincerely Yours,

Urvashi Sharma
Secretary - YAISHWARYAJ SEVA SANSTHAAN
101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
Rajajipuram,Lucknow-226017,Uttar Pradesh,India
Contact 9369613513
Right to Information Helpline 8081898081
Helpline Against Corruption 9455553838


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उत्तर प्रदेश में सूचना का अधिकार ( आरटीआई ) का वजूद बचाये रखने के लिए धरना प्रदर्शन आज लखनऊ में

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Dharna ( demonstration ) in Lucknow today to save Right to Information ( RTI ) regime in Uttar Pradesh

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आरटीआई विशेषज्ञ ई० संजय शर्मा

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RTI Expert Er. Sanjay Sharma

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RTI activists up in arms against Uttar Pradesh info officers

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RTI activists up in arms against Uttar Pradesh info officers

Oct 12, 2014 | Age Correspondent l Lucknow

http://wwv.asianage.com/india/rti-activists-arms-against-uttar-pradesh-info-officers-087

The RTI activists in Uttar Pradesh are up in arms against the state
information commissioners (SIC) and are accusing them of holding back
information to protect the government's interests. The RTI activists,
under the banner of half a dozen organisations, will be holding a
demonstration on Sunday to protest against the attitude of the SICs
and have even challenged them to an open debate.

According to Sanjay Sharma, who heads the 'Tehreer ' organisation and
is a well known RTI activist, said that the state information
commission was not acting as a custodian of people's rights. "Instead,
the nine SICs who have apparently been appointed for their political
loyalties are busy withholding information and protecting the
government."

He said that over 55,000 cases were pending with the state information
commission which was indicative of the prevailing state of affairs.
"There is no guideline for clearing a case within the time frame or
even hearing it. This causes great inconvenience and the spirit of the
RTI gets demolished," he said.

--
-Sincerely Yours,

Urvashi Sharma
Secretary - YAISHWARYAJ SEVA SANSTHAAN
101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
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Saturday 11 October, 2014

आमंत्रण एवं प्रकाशनार्थ : आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर 'येश्वर्याज' द्वारा आयोजित जनसुनवाई, कैंप एवं 'तहरीर' द्वारा आयोजित धरना, सूचना आयुक्तों को चुनौती लक्ष्मण मेला मैदान धरना स्थल पर 12 अक्टूबर 2014 को पूर्वान्ह 11 बजे से अपरान्ह 03 बजे तक l

प्रिय मित्र,
आप अवगत हैं कि आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर पारदर्शिता और जबाबदेही
की हमारी मुहिम की श्रंखला में उत्तर प्रदेश के सामाजिक संगठनों के साथ
कल 12 अक्टूबर 2014 को 'येश्वर्याज' द्वारा जनसुनवाई, कैंप एवं 'तहरीर'
द्वारा धरना, सूचना आयुक्तों को चुनौती का कार्यक्रम लक्ष्मण मेला
मैदान धरना स्थल पर पूर्वान्ह 11 बजे से अपरान्ह 03 बजे तक आयोजित किया
जा रहा है l

इस कार्यक्रम में येश्वर्याज सेवा संस्थान , एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु
इनफार्मेशन , आरटीआई कॉउंसिल ऑफ़ यूपी , ट्रैप संस्था अलीगढ , सूचना का
अधिकार कार्यकर्ता एसोसिएशन, पीपल्स फोरम, मानव विकास सेवा समिति
मुरादाबाद , जन सूचना अधिकार जागरूकता मंच,भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच
, एसआरपीडी मेमोरियल समाज सेवा संस्थान , आल इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स
एंड शैडयूल्ड ट्राइब्स एम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन, भागीदारी मंच,
सार्वजनिक जबाबदेही भारत निर्माण मंच आदि संगठन शिरकत कर रहे है l

कार्यक्रम में कामनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव नई दिल्ली की ओर से
येश्वर्याज को निःशुल्क उपलब्ध कराई गयी आरटीआई गाइड का भी निःशुल्क
वितरण किया जायेगा l


आपसे अनुरोध है कि कृपया अपने माध्यम से अधिक से अधिक जनसामान्य को हमारी
मुहिम से जोड़ने और हमारे कार्यक्रम में उपस्थित होने की कृपा करें l

कृतिदेव फोंट में विज्ञप्ति कार्यक्रम का पोस्टर और सूचना आयोग को
प्रेषित चुनौती पत्र भी आपके समक्ष प्रस्तुत है l

सादर l


--
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Urvashi Sharma
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संस्था 'तहरीर' की यूपी के हालिया कार्यरत 9 सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती

Taken from facebook wall of Sanjay Sharma

साथियों,
मैंने यूपी के हालिया कार्यरत 9 सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप
लगाते हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती दी है l इसके
लिए मैं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान धरना स्थल
पर 12 अक्टूबर 2014 को पूर्वान्ह 11 बजे से अपरान्ह 03 बजे तक उपस्थित
रहूंगा l लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के
मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर
कार्यशील संस्था 'तहरीर' से प्राप्त सूत्रों के आधार पर मुझे यह कहने
में कोई गुरेज नहीं है कि सूचना आयुक्तों की अक्षमता के ही कारण आरटीआई
के तहत सूचना दिलाने बाली संस्था सूचना आयोग ही आज सूचना दिलाने के
मार्ग की सबसे बड़ी वाधा बन गयी है l

'तहरीर' वेहद शुक्रगुज़ार है येश्वर्याज सेवा संस्थान, एक्शन ग्रुप फॉर
राइट टु इनफार्मेशन , आरटीआई कॉउंसिल ऑफ़ यूपी , ट्रैप संस्था अलीगढ ,
सूचना का अधिकार कार्यकर्ता एसोसिएशन, पीपल्स फोरम, मानव विकास सेवा
समिति मुरादाबाद , जन सूचना अधिकार जागरूकता मंच,भ्रष्टाचार हटाओ देश
बचाओ मंच , एसआरपीडी मेमोरियल समाज सेवा संस्थान , आल इण्डिया शैडयूल्ड
कास्ट्स एंड शैडयूल्ड ट्राइब्स एम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन, भागीदारी मंच
और सार्वजनिक जबाबदेही भारत निर्माण मंच जैसे उन तमाम संगठनों का जो
न केवल हमारे विचारों से इत्तेफाक रखते हैं अपितु हमारी इस लड़ाई में कंधे
से कंधा मिलाकर हमारा साथ भी दे रहे हैं l



मैं 'तहरीर' की ओर से आपको उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण मेला
मैदान धरना स्थल पर 12 अक्टूबर 2014 को पूर्वान्ह 11 बजे इस कार्यक्रम
में आने का निमंत्रण दे रहा हूँ l आशा है पारदर्शिता संवर्धन और
जबाबदेही निर्धारण की हमारी इस मुहिम में आप हमारा साथ अवश्य देंगे l



ई मेल भेजने के अतिरिक्त मैंने इस सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश के राज्य
सूचना आयोग के सचिव के कार्यालय में एक तीन पेज का चुनौती पत्र भी
प्राप्त करा दिया है जिसकी स्कैन्ड कॉपी अपलोड कर रहा हूँ l


--
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Urvashi Sharma
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Note : if you don't want to receive mails from me,kindly inform me so
that i should delete your name from my mailing list.

Alleging incapacity, a Activist Challenges 9 Info-Commissioners of UP for an open in-camera debate on RTI: Mounting grievances against Grievance Redressal Forum attributed mainly to the incapacity of Info-Commissioners : Public hearing & Awareness Camp by ‘YAISHWARYAJ’ and Demonstration under the aegis of ‘TAHRIR’ over the dismal performance of the State Information Commission at Laxman Mela Maidaan Dharna Sthal in State Capital Lucknow on 12.10.2014 from 11A.M. to 03 P.M. : Programs supported by more than a dozen Social organizations of U.P.

Lucknow : More than a dozen Social organization of Uttar Pradesh have
joined hands with Lucknow based NGO 'YAISHWARYAJ' and Social Group
'TAHRIR' for a Public Hearing & Awareness Camp on RTI and to protest
against the growing problems of RTI users of the State.

YAISHWARYAJ has decided to hold a public hearing & Awareness Camp on
RTI on the same day at same time at same venue.

TAHRIR ( Transparency, Accountability & Human Rights' Initiative for
Revolution ) is a Bareilly/Lucknow based Social Organization working
for transparency enhancement in public life, fixing of accountability
in public life effectively and also for protection of Human Rights.
Founder President of TAHRIR Er. Sanjay Sharma through his E-mail dated
09-10-14, has apprised UPSIC , Chief Justice of India, Governor of
UP, DM & SSP of Lucknow about the problems continuously persisting at
UPSIC and has attributed most of these to the incapacity of
info-commissioners. Through his e-mail, Sanjay has Challenged all 9
info-commissioners to participate in an open in camera debate over RTI
at Laxman Mela Maidaan Dharna Sthal in State Capital Lucknow on
12.10.2014 anytime between 11A.M. to 03 P.M. either simultaneously or
one by one.

TAHRIR's initiative has garnered support of YAISHWARYAJ Seva Sansthaan
Lucknow, Action Group for Right to Information Lucknow, RTI Council of
Uttar Pradesh, Soochna Ka Adhikaar Karyakarta Association, Peoples'
Forum, Manav Vikas Seva Samiti Moradabad,Jan Soochna Adhikaar
Jaagrookta Manch Lucknow , TRAP Aligarh,Bhrashtachaar Hatao Desh
Bachao Manch, SRPDMS Seva Sansthaan,All India Scheduled Caste &
Scheduled Tribes employees Welfare Association , Bhageedaaree Manch
and Sarvajanik Jababdehee Bharat Nirmaan Manch Lucknow.

Letter as sent by Er. Sanjay Sharma to UPSIC , Chief Justice of India,
Governor of UP, DM & SSP of Lucknow is being copy pasted below for
your perusal.
Sanjay Sharma
<tahririndia@gmail.com> Thu, Oct 9, 2014 at 11:32 AM
To: sec.sic@up.nic.in, scic.up@up.nic.in
Cc: supremecourt <supremecourt@nic.in>, hgovup <hgovup@up.nic.in>,
hgovup <hgovup@nic.in>, hgovup <hgovup@gov.in>, uppcc@up.nic.in,
uppcc-up@nic.in, dgp@up.nic.in, dgpolice@sify.com, adglo.up@nic.in,
digrlkw@up.nic.in, "dmluc@up.nic.in\" <dmluc@up.nic.in>, \"dmluc\""
<dmluc@nic.in>, ssplkw-up@nic.in
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To,
Sri Sudesh Kumar Ojha - Secretary
Uttar Pradesh State Information Commission
6th Floor,Indira Bhavan,Ashok Marg,Lucknow
Uttar Pradesh,India,India, Pin Code-226001

Sub: Dismal Performance of Uttar Pradesh State Information Commission
: Social Organization TAHRIR's request to take effective measures to
save transparency regime in Uttar Pradesh and also to accept challenge
for an open in-camera discussion on RTI act with all nine Information
Commissioners to expose their incapacity before the nation.

Sir,
TAHRIR ( Transparency, Accountability & Human Rights' Initiative for
Revolution ) is a Bareilly/Lucknow based Social Organization working
for transparency enhancement in public life, fixing of accountability
in public life effectively and also for protection of Human Rights. In
its recently held meeting ,Transparency wing of TAHRIR discussed
various issues related to transparency regime of Uttar Pradesh and
based on feedback received from various RTI users and volunteers of
various social organizations of Uttar Pradesh concluded that dismal
performance of Uttar Pradesh State Information Commission can mainly
be attributed to complete ignorance of provisions of RTI act by
present Information Commissioners. It was also decided that to expose
this particular incapacity of nine information commissioners before
the nation, Social Organization TAHRIR should raise a challenge for
an open in-camera discussion on compliance of various provisions of
RTI act with all nine Information Commissioners.

As Founder President of 'TAHRIR', through your goodself, I am sending
this challenge letter to all nine Information Commissioners,
presently working with UPSIC, to accept my challenge for an open
in-camera discussion on RTI act on 12th October 2014 ( Sunday ) at
Laxman Mela Maidaan Dharna Sthal in State Capital Lucknow anytime
between 11A.M. to 03 P.M.. I alone, shall take on all nine Information
Commissioners Simultaneously.

This is noteworthy that on the issue of pathetic state of
implementation of transparency law in the state of Uttar Pradesh,
TAHRIR has recently given a memorandum to the Governor of Uttar
Pradesh also. Our organization, as a watchdog of transparency regime
in the state of U.P. is really concerned over dismal performance of
Uttar Pradesh State Information Commission. Presently, though there
are nine information commissioners, it is as if they all are defunct
as pendency stands at an unimaginable 55000 cases. Many cases
registered in year 2009 are still pending in UPSIC. There is complete
absence of a policy for disposal of pending cases, registering and
hearing of Second Appeals and Complaints. Even after (almost) 9 years
of enactment of RTI act , Uttar Pradesh State Information Commission
has not yet approved its rules.

As soon as any Second appeal or Complaint is registered the same
should be allotted to one of the commissioners for further action but
this is not happening at all and lead time for first hearing of a
fresh appeal or complaint has risen to somewhere around 6-12 months
depending on a particular information commissioner. Present
Information Commissioners are not aware of basic statutory provisions
of the act and they are hearing the cases arbitrarily on their own
whims & fancies. So far as complaints are concerned, some Information
Commissioners are hearing them, Some are treating them as first
appeals & sending these to concerned public authorities while some are
rejecting them out-rightly.

None of the offices of information Commissioners is delivering orders
unless their palms are greased. Even while adjourning the cases, no
uniformity is being maintained. Adjournments ranging from 30 days to 6
months has come to our knowledge. In the absence of approved rules,
there is no uniformity in any of the procedures followed by
Information Commissioners or the administrative staff of UPSIC.

Information Commissioners are adamant and reluctant in meeting the
Citizens and Activists and are devising cheap means like registering
false F.I.R.s against activists, insulting and misbehaving with
activists in hearings just to avoid hearing of appeals and complaints
filed by Activists. This has resulted in anarchy in the Commission.
Information Commissioners are not dictating complete orders in the
open court resulting in raising number of complaints of tampered
orders managed by public authorities in their favor.RTI users are
accusing information commissioners of revoking penalty orders as they
have acquired some financial or other interest.

TAHRIR has no hesitation to say that so called 'person of eminence' of
state, handpicked as Information Commissioners by state government in
the guise of selection, are now showing their real face and proving
themselves to be 'person of real disgrace' to the state.

In these Circumstances, In its Quest for Transparency, TAHRIR has also
decided to hold a Protest at Laxman Mela Maidaan Dharna Sthal in State
Capital Lucknow on 12.10.2014 from 11A.M. to 03 P.M. against dismal
performance of UPSIC.

Please take note of abovementioned facts, take effective measures to
save transparency regime in Uttar Pradesh and covey the challenge of
'TAHRIR' to all nine Information Commissioners, presently working
with UPSIC, to accept our challenge for an open in-camera discussion
on RTI act on 12th October 2014 ( Sunday ) at Laxman Mela Maidaan
Dharna Sthal in State Capital Lucknow anytime from 11A.M. to 03 P.M.
where I alone, shall wait to take on all nine Information
Commissioners Simultaneously to expose their incapacity before the
nation.

Copy Being sent with humble Regards for necessary action to :
1- Hon'ble the Chief Justice of India, Supreme Court of India, New Delhi.
2- Hon'ble the Governor of Uttar Pradesh, Lucknow.
3- District Magistrate of Lucknow.
4- SSP of Lucknow.

Sincerely yours,

( Er. Sanjay Sharma )
Founder & Chairman
ransparency, Accountability & Human Rights Initiative for Revolution
101,Narain Tower,F Block,Rajajipuram
Lucknow,Uttar Pradesh-226017
E-mail tahririndia@gmail.com
Mobile 9369613513

Letter No. : TAHRIR/5/2014-15/141009
Date : 09-10-2014









--
-Sincerely Yours,

Urvashi Sharma
Secretary - YAISHWARYAJ SEVA SANSTHAAN
101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
Rajajipuram,Lucknow-226017,Uttar Pradesh,India
Contact 9369613513
Right to Information Helpline 8081898081
Helpline Against Corruption 9455553838


http://upcpri.blogspot.in/


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