Tuesday 29 April, 2014

बड़े बुजुर्गों के अपमान का आयोग न बनाएं बिष्ट जी!

बड़े बुजुर्गों के अपमान का आयोग न बनाएं बिष्ट जी!

प्रभात रंजन दीन

http://prabhatranjandeen.blogspot.in/2014/04/blog-post_27.html

कैसे लोकतंत्र चलेगा बिष्ट जी! पत्रकार आम लोगों के लिए प्रतिबद्ध होने
का दावा तो करता है लेकिन सत्ता जैसे ही किसी पत्रकार को अपने तंत्र में
शामिल कर लेती है, पत्रकार नेताओं से ज्यादा सत्तादंभी हो जाता है।
नेताओं ने यही कुचक्र तो किया है। पत्रकार समुदाय को विधिक रूप से समाज
में स्थापित करने के बजाय उसने पत्रकारों को व्यक्तिगत रूप से उपकृत किया
और इस उपकार की वजह से समाज का भारी नुकसान और संविधान का भीषण अपमान हो
रहा है। अरविंद सिंह बिष्ट उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के एक आयुक्त
चुने गए हैं। पुराने पत्रकार रहे हैं। जब पत्रकार थे तब मित्र भी थे। ऐसे
पत्रकारों के सरकारी तंत्र में आने से सरकार में चारित्रिक परिवर्तन की
सम्भावना बननी चाहिए, लेकिन होता उल्टा है। पत्रकार में ही सरकारी चरित्र
ठाठें मारने लगता है और मूल उद्देश्य नैतिक होने के बजाय 'नेताइक' हो
जाता है। सूचना आयुक्त बनना तो एक अवसर था बिष्ट साहब, कि इतिहास में
आपका नाम दर्ज हो जाता। सूचना का संवैधानिक अधिकार चाहने वाले आम लोगों
की भीड़ आपका नाम सम्मान से लेती, लेकिन आपमें जन-सम्मान पाने की वह
धार्यता नहीं है। मैं कभी भी कोई लेख व्यक्तिपरक नहीं लिखता, लेकिन आपने
बुजुर्ग आरटीआई ऐक्टिविस्ट अशोक कुमार गोयल को जिस तरह अपमानित कर उन्हें
जेल भिजवाया वह संवैधानिक-धर्म-चरित्र की घोर अवहेलना है और इसके खिलाफ
पूरे समाज को खड़े होने की आवश्यकता है। एक बुजुर्ग समाजसेवी का अपमान
व्यक्ति-केंद्रित नहीं, समाज केंद्रित है, लिहाजा एक सामान्य नागरिक का
संवैधानिक दायित्व निभाते हुए मैं यह तकलीफ लिख रहा हूं। श्री गोयल ने
सूचना ही तो मांगी थी! अगर सरकार से जुड़ी सूचनाएं आम लोगों तक नहीं
पहुंचाने के लिए ही आप कटिबद्ध थे तो सूचना आयुक्त बनने के लिए इतने
उत्साहित क्यों थे! या सरकार के उपकार का आप इसी तरह प्रति-उपकार सधाना
चाह रहे हैं? बिष्ट जी! अभी ज्यादा दिन भी नहीं बीते हैं। घंटों दफ्तर
में बैठ कर मेरे साथ आप सामाजिक सरोकारों पर बातें करते थे, आमजन की
समस्याओं पर लिखी खबरों पर आप खास तौर पर बधाई देते थे। अब वो क्या आप ही
हैं बिष्ट साहब? अशोक कुमार गोयल जब अखबार के दफ्तर में आते हैं तो हम
पत्रकार कुर्सी से खड़े होकर उनका सम्मान करते हैं। समाज के दुख-दर्द के
प्रति गोयल साहब इतने संजीदा हैं कि हम पत्रकार उनके सामने खुद को बहुत
ही छोटा महसूस करें। ऐसे सज्जन सम्मानित व्यक्ति को धक्के मार कर कक्ष से
बाहर निकाल देने का फरमान आपने कौन सा बिष्ट होते हुए जारी किया होगा, यह
समझने में मैं असमर्थ नहीं हूं। आपने कभी आम आदमी की तरह समाज में
गलियों-नुक्कड़ों पर आम सुविधाओं के लिए धक्के खाए हैं? कभी भी? अगर
एक-दो धक्के भी खाए होते तो धक्के खा-खाकर उम्र के हाशिए पर जा चुके गोयल
साहब को धक्का मार कर बाहर कर देने का आदेश देने वाले अरविंद सिंह तुगलक
आप न बने होते। ...और सामाजिक संस्कारों की सीख भी अगर ध्यान में हो तो
किसी बुजुर्ग ने थोड़ा तल्खी से कह भी दिया तो क्या पिता को हम धक्के मार
कर घर से बाहर कर देंगे? बिष्ट जी, सत्ता अधैर्य देती है, इसीलिए तो
चरित्रहीन मानी जाती है। सूचना आयुक्त की संवैधानिक पीठ पर बैठे व्यक्ति
का सत्ता-अधैर्य अशोभनीय और क्षोभनीय दोनों है। आपने तो गोयल साहब को
धक्के मार कर अपने कक्ष से बाहर निकलवा दिया और देर रात में भारी
पुलिस-फौज भेजकर उन्हें घर से भी उठवा लिया। रातभर उन्हें हजरतगंज
कोतवाली में बिठाए रखा गया। ऐसा क्या गोपनीय था कि इस 'महान-गिरफ्तारी'
के बारे में एसएसपी से भी छुपाया गया? बुजुर्ग गोयल साहब अचानक रातोरात
इतने बड़े अपराधी कैसे बन गए कि पुलिस ने तमाम संगीन धाराओं के साथ-साथ
'क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट ऐक्ट' के तहत भी उनपर मुकदमा ठोक दिया? आपने और
कुछ पुलिस अधिकारियों ने मिल कर पूरे प्रदेश को क्या अपनी जमींदारी समझ
ली है? बिष्ट जी, आप जब पत्रकार थे तब आपने भी लिखा ही होगा पुलिस की ऐसी
बेहूदा हरकतों के खिलाफ! तब और अब में व्यवहार का नजरिया कैसे बदल गया कि
आपने यह महसूस भी नहीं किया कि 'हाई ब्लड प्रेशर' और 'ब्लड शुगर' के मरीज
बुजुर्ग को पुलिस ने रात भर दवा भी नहीं लेने दी तो उन पर क्या गुजरी
होगी! इसे श्री गोयल की सुनियोजित हत्या की कोशिश क्यों नहीं माना जाए?
आप आज पत्रकार होते तो क्या आप यह सामाजिक कोण अपनी दृष्टि में नहीं
रखते? अभी भी वक्त है बिष्ट जी, विचार करिए, बुजुर्गों के सम्मान का समाज
को संस्कारिक संदेश दीजिए और बड़े हो जाइये...

--
-Sincerely Yours,

Urvashi Sharma
101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
Rajajipuram,Lucknow-226017,Uttar Pradesh,India
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