Sunday 8 September, 2013

उत्तर प्रदेश के 1983 बैच के आईएएस अधिकारी सदाकांत की लेह में ऊंचाई वाले क्षेत्र में सड़क का ठेका देने से कथित भूमिका की जांच हुई

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यह बहस भी चलती रही है कि गलत कौन है, राजनीतिक व्यवस्था या प्रशासनिक
व्यवस्था। राजनीति को हर मामले में कटघरे में खड़ा कर देने का रिवाज रहा
है। कुछ प्रशासनिक व्यवस्था को भ्रष्टाचार पनपने की वजह मानते हैं। किसी
एक की तरफ उंगली उठाने से सही जवाब नहीं मिल सकता। जहां एक तरफ राजनीतिक
तंत्र ईमानदारी को ध्वस्त कर रहा है, वहीं कुछ मामलों में नौकरशाही की
विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ रहे हैं। जनवरी 2011 से मार्च 2012 के बीच
भ्रष्टाचार के महाशिखर को थोड़ा बहुत खरोंच पाने के अभियान के तहत जहां
राजनीति से जुड़े कुछ लोगों पर गाज गिरी, वहीं सीबीआई ने दो दर्जन आईएएस
अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की छानबीन की। जांच के घेरे में आए
अफसर भूमि घोटाले, आय के ज्ञात स्रोतों से ज्यादा संपत्ति जुटाने और कुछ
लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए नीतिगत फैसले करने के कथित रूप से दोषी
पाए गए। इनमें से कुछ अफसरों की कथित अनियमितताएं सूचना के अधिकार कानून
के तहत जानकारी मिलने के बाद सामने आईं। सीबीआई अधिकारियों का कहना है कि
इनमें से कई अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 19ए के
तहत कानूनी कार्रवाई करने की अनुमति उन्होंने पा ली है और इन अधिकारियों
के खिलाफ जल्दी ही आरोप पत्र दाखिल कर दिए जाएंगे। भ्रष्टाचार के कथित
आरोपों में शामिल अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के लिए
सीबीआई को कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग से मंजूरी लेना अनिवार्य है।
जांच के घेरे में आए उच्चस्तरीय नौकरशाहों में प्रमुख हैं 1973 बैच के
यूपी काडर के सिद्धार्थ बेहुरा। उन्हें सीबीआई ने 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले
में पूर्व केंद्रीय संचार मंत्री ए राजा के साथ गिरफ्तार किया था। बेहुरा
को 2जी घोटाले के प्रमुख कथित साजिशकर्ताओं में से एक माना गया है।
गिरफ्तारी के समय बेहुरा रिटायर हो चुके थे। सीबीआई ने राजा व अन्यों के
साथ उनके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया है।
पश्चिम बंगाल के 1976 बैच के आईएएस अधिकारी देबादित्य चक्रवर्ती को
कोलकाता के सवा सौ करोड़ रुपए के घोटाले में कथित रूप से शामिल होने के
आरोप में गिरफ्तार किया गया। उन पर आरोप है कि लौह अयस्क के निर्यात सौदे
में उन्होंने पैसों का गोलमाल किया। इस सौदे में चीन की एक कंपनी भी
शामिल थी। पश्चिम बंगाल काडर के ही 1977 बैच के आईएएस अधिकारी आरएम जमीर
भी इसी घोटाले में कथित रूप से शामिल पाए गए।
महाराष्ट्र काडर के 1978 बैच के जयराज पाठक आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाले
के अभियुक्त हैं। पाठक तब राज्य शहरी विकास विभाग में मुख्य सचिव थे। उन
पर आरोप है कि उन्होंने नागरिक निकाय की समिति की मंजूरी के बिना मुंबई
में सोसायटी की इमारत सौ मीटर से ऊंची बनाने की इजाजत दे दी। आरोप है कि
इस काम के बदले उनके बेटे को आदर्श सोसायटी में एक फ्लैट मिला। आदर्श
सोसायटी घोटाले के ही सह अभियुक्त प्रदीप व्यास को सीबीआई ने हाल ही में
गिरफ्तार किया। महाराष्ट्र काडर के 1989 बैच के आईएएस अधिकारी व्यास ने
अगस्त 2003 से मई 2005 के बीच मुंबई के जिला कलक्टर के रूप में काम करते
हुए कथित रूप से अन्य अभियुक्तों के साथ मिलकर आय के झूठे दस्तावेज
स्वीकार कर उन लोगों को आदर्श सोसायटी की सदस्यता दे दी जो उसके पात्र
नहीं थे। उनकी आईएएस अधिकारी पत्नी सीमा व्यास का सोसायटी में एक फ्लैट
है। दिल्ली सरकार में वित्त आयुक्त के पद पर रहते हुए 1978 बैच के आईएएस
अधिकारी राकेश मोहन ने दिल्ली जल बोर्ड की पाइपलाइन दुरुस्त करने का ठेका
एक निजी कंपनी को निर्धारित खर्च से ज्यादा 35 करोड़ 84 लाख रुपए में
दिया और उसके बदले कथित रूप से तीन करोड़ रुपए की रिश्वत ली। बिहार के
1981 बैच के आईएएस अधिकारी शिवशंकर शर्मा के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति
मामले में जांच हुई।
प्रदीप शुक्ला उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाले
के अभियुक्त हैं। 1981 बैच में अव्वल रहे आईएएस अधिकारी शुक्ला उत्तर
प्रदेश में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं। उनकी पत्नी अनुराधा शुक्ला भी
आईएएस अधिकारी हैं। 1981 बैच के ही यूनियन टैरिटरी काडर के आईएएस अधिकारी
बीवी सेल्वाराज जब लक्षद्वीप में प्रशासक के पद पर नियुक्त थे, तब आरोप
है कि उन्होंने सरकारी ठेके दिलाने का आश्वासन देकर एक ठेकेदार से रिश्वत
ली।
मध्य प्रदेश काडर के 1982 बैच के आईएएस अधिकारी के सुरेश कुमार को 2007
में नियमों को तोड़ कर एक विदेशी पोत को लंगर डालने की इजाजत देने और
उससे कोई जुर्माना वसूल न कर सरकार को कथित रूप से 20 करोड़ रुपए का चुना
लगाने का दोषी पाया गया। उनके घर मारे गए छापे में सीबीआई को दो करोड़ 36
लाख रुपए मिले। आंध्र प्रदेश के 1983 बैच के आईएएस अधिकारी एलबी
सुब्रह्मण्यम एम्मार-एमजीएफ घोटाले में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे। उन
पर और उन्हीं के बैच के आईएएस अधिकारी बीपी आचार्य पर आंध्र प्रदेश के
पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी के साथ मिलकर संपत्ति घोटाले में
शामिल होने का आरोप भी लगा। आचार्य पर हैदराबाद में औद्योगिक आधारभूत
ढांचा विकसित करने में भ्रष्टाचार का आरोप भी लगा। आंध्र प्रदेश के गृह
सचिव रहते हुए उन्हें पिछले साल जनवरी में गिरफ्तार किया गया।
उत्तर प्रदेश के 1983 बैच के आईएएस अधिकारी सदाकांत की लेह में ऊंचाई
वाले क्षेत्र में सड़क का ठेका देने से कथित भूमिका की जांच हुई।
गृहमंत्रालय ने उन्हें उनके मूल काडर में वापस भेज दिया था। जहां उन्हें
सीमा प्रबंधक के संयुक्त सचिव के पद पर नियुक्ति मिली थी। 1983 बैच के ही
आईएएस अधिकारी ओ रवि को सीबीआई ने दमन और दीव की डिस्टीलरी से 25 करोड़
रुपए की रिश्वत मांगते हुए गिरफ्तार किया था। सीबीआई का आरोप है कि
डिस्टीलरी को बेजा फायदा पहुंचाने से सरकार को 340 करोड़ रुपए का नुकसान
हुआ। गिरफ्तारी से पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय में उनकी संयुक्त सचिव के
रूप में नियुक्ति हो गई थी।
वरिष्ठ नौकरशाह परिमल राय को राष्ट्रमंडल खेल घोटाले में अपनी कथित
भूमिका के लिए जांच का सामना करना पड़ा। राष्ट्रमंडल खेलों के समय 1985
बैच के आईएएस अधिकारी राय नई दिल्ली नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष थे।
सम्मेलन केंद्र के निर्माण में कथित अनियमितता बरते जाने के आरोप में
सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार भी किया। इस मामले में पंद्रह करोड़ रुपए का
नुकसान हुआ। आंध्र प्रदेश की 1988 बैच की आईएएस अधिकारी वाई श्रीलक्ष्मी
पर आरोप लगा कि आंध्र प्रदेश की उद्योग सचिव रहते हुए उन्होंने ओबुलापुरम
माइनिंग कंपनी के मालिक को विशेष छूट दी। 1989 बैच के आईएएस अधिकारी
विनोद कुमार तो एक, दो नहीं बल्कि ओडिशा ग्रामीण भवन विकास निगम के 475
करोड़ रुपए के सात मामलों फंसे पाए गए। पश्चिम बंगाल काडर के 1990 बैच के
आईएएस अधिकारी मनोज कुमार अग्रवाल पर आरोप लगा कि उन्के पास अपनी आय के
ज्ञात स्रोतों से ज्यादा संपत्ति है। झारखंड के पूर्व स्वास्थ्य सचिव
डाक्टर प्रदीप कुमार राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाले में सीबीआई
द्वारा नाम डाले जाने के बाद कई महीनों तक फरार रहे। 1991 बैच के आईएएस
अधिकारी कुमार पर 130 करोड़ रुपए के इस घोटाले में शामिल होने का आरोप तो
लगा ही है, आय से ज्यादा संपत्ति रखने के मामले में भी वे फंस गए।
केंद्र शासित प्रदेश काडर के 1998 बैच के आईएएस अधिकारी अब्राहम
वारिकमक्कल ने कथित रूप से 2006 से 2009 के बीच अपने पद का दुरुपयोग करते
हुए सरकारी ठेकेदार कासिम के साथ मिलकर घपला किया। सीबीआई का आरोप है कि
अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर उन्होंने कासिम को बलुआ रेत और
ग्रेनाइट चिप्स लक्षद्वीप सप्लाई करने का ठेका दिया बाद में वे अपने
वरिष्ठ अधिकारी सेल्वाराज के साथ अन्य घपलों में शामिल हो गए। के
धनलक्ष्मी गौड़ा का नाम उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम के
घोटाले में जुड़ा। उत्तर प्रदेश काडर की 2000 बैच की आईएएस अधिकारी
धनलक्ष्मी के घर सीबीआई ने इस संदेह के आधार पर छापा मारा कि उन्होंने आय
के ज्ञात स्रोतों से ज्यादा संपत्ति जमा कर ली है।
(संवाद परिक्रमा)

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