Wednesday 11 September, 2013

पवन कुमार मिश्रा ने कूटरचित प्रपत्रों के सहारे विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से राजकीय गोविन्द बल्लभ पन्त पॉलीटेक्निक के द्वितीय श्रेणी के राजपत्रित पद कर्मशाला अधीक्षक पर नौकरी पा ली

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पुलिस जांच पर न्यायालय का अविश्वास


पुलिस जांच पर न्यायालय का अविश्वासपुलिस जांच पर न्यायालय का अविश्वास

Written by Editor
Tuesday, 10 September 2013 15:36


लखनऊ: लखनऊ के अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने जालसाजी से राजपत्रित पद
पर नियुक्ति पाने के एक प्रकरण में मामले के सम्पूर्ण तथ्य,परिस्थितियों
तथा उच्च न्यायालय इलाहबाद द्वारा न्याय निर्णयन क्रिमिनल मिसलेनियस केस
नंबर 9297/07 सुखवासी बनाम स्टेट ऑफ़ यू0 पी0 द्वारा प्रतिपादित
सिद्धांत को द्रष्टिगत रखते हुए मामले को पूनः विवेचना हेतु प्रेषित किया
जाना उचित नहीं मानते हुए थाना कारोरी के विवेचक द्वारा प्रेषित अंतिम
आख्या को निरस्त करने और मामले को परिवाद के रूप में दर्ज करने का आदेश
पारित किया है|

लखनऊ की सामजिक कार्यकत्री उर्वशी शर्मा ने बताया कि उत्तर प्रदेश का
समाज कल्याण विभाग अनुसूचित जाति के छात्रों के हितार्थ मोहान रोड लखनऊ
पर राजकीय गोविन्द बल्लभ पन्त पॉलीटेक्निक नमक एक मात्र संस्था का
सञ्चालन वर्ष 1965 से कर रहा है| पवन कुमार मिश्रा ने वर्ष 2000 में
कूटरचित प्रपत्रों के सहारे विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से इस संस्था
के द्वितीय श्रेणी के राजपत्रित पद कर्मशाला अधीक्षक पर नौकरी पा ली थी|
प्रकरण संज्ञान में आने पर उर्वशी ने विभागीय अधिकारियों को अनेकों
प्रार्थना पत्र दिए किन्तु समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों द्वारा कोई
कार्यवाही न किये जाने पर उर्वशी ने पवन कुमार मिश्रा के विरुद्ध कानूनी
कार्यवाही के लिए थाना काकोरी में वर्ष 2008 में प्रार्थना पत्र दिया l
उर्वशी के प्रार्थना पत्र पर थाना काकोरी में पवन कुमार मिश्रा के
विरुद्ध आई० पी० सी ० की धारा 420,467,468 के तहत अपराध संख्या 30/08
की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज हुई|

थाना काकोरी के विवेचक मो० मुजतबा द्वारा विवेचानोपरान्त अंतिम आख्या
न्यायालय में प्रेषित की गयी l अंतिम आख्या के बावत वादिनी को न्यायालय
के द्वारा जरिऐ नोटिस आहूत किया गया| उर्वशी के अपनी आपत्तियां अधिवक्ता
त्रिभुवन कुमार गुप्ता के द्वारा प्रोटेस्ट प्रार्थना पत्र के माध्यम से
न्यायालय के समक्ष रखीं|

न्यायालय ने पुलिस की जांच पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए विवेचक द्वारा
वादिनी का बयान न लिए जाने को गंभीरतापूर्वक लिया और पुलिस जांच पर गंभीर
टिप्पणी करते हुए आदेश में अभिलिखित किया कि "सम्पूर्ण केस डायरी एवं
पत्रावली के परिशीलन से भी स्पस्ट है कि प्रस्तुत मामले में दाखिल
अभिलेखीय एवं मौखिक साक्ष्य के आधार पर तथ्यों को साक्ष्य के माध्यम से
साबित किया जा सकता है | "

पुलिस पर अविश्वास जताते हुए न्यायालय ने मामले के सम्पूर्ण
तथ्य,परिस्थितियों तथा उच्च न्यायालय इलाहबाद द्वारा न्याय निर्णयन
क्रिमिनल मिसलेनियस केस नंबर 9297/07 सुखवासी बनाम स्टेट ऑफ़ यू0 पी0
द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत को द्रष्टिगत रखते हुए मामले को पुनर विवेचना
हेतु प्रेषित किया जाना उचित नहीं मानते हुए थाना कारोरी के विवेचक
द्वारा प्रेषित अंतिम आख्या को निरस्त करने और मामले को परिवाद के रूप
में दर्ज करने का आदेश पारित किया है और परिवादिनी को बयान हेतु 23-09-13
को न्यायालय में उपस्थित होने का आदेश दिया है l

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