Thursday 7 January, 2016

यूपी में आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्याएं बढायेगी उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली 2015: उर्वशी शर्मा





लखनऊ/07 जनवरी 2016/ यूपी के प्रशासनिक सुधार विभाग द्वारा बीते 3 दिसम्बर को जारी की गयी उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली 2015 को आरटीआई एक्ट के प्राविधानों के खिलाफ बताते हुए आरटीआई एक्टिविस्टों ने अखिलेश सरकार को पारदर्शिता और जबाबदेही के मुद्दे पर कटघरे में खड़ा किया है और  इस नियमावली का विरोध करते हुए  सूबे के राज्यपाल राम नाइक को पत्र के माध्यम से आपत्तियां भेजकर इस नयी आरटीआई नियमावली पर रोक लगाने की गुहार लगाई है. एक्टिविस्टों का कहना है कि इस नियमावली के अनेकों नियम पूरी तरह से सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की मूल मंशा के खिलाफ है और इस नियमावली के लागू होने से आरटीआई आवेदकों को सूचना मिलना तो दूर कौड़ी हो ही जायेगी साथ ही साथ उसकी जान को गंभीर खतरे भी पैदा हो जायेंगे.


यूपी के आरटीआई एक्टिविस्टों की अगुआई कर रहे सामाजिक संगठन येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव, सामाजिक कार्यकत्री और आरटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा ने बताया कि अब तक यूपी में जनसूचना अधिकारियों और सूचना आयुक्तों के नापाक गठजोड़ के चलते आरटीआई आवेदकों को सूचना आयोग जाने पर अपमान और उत्पीडन सहने को बाध्य होना पड़ रहा था लेकिन इस नयी नियमावली के नियम 13(3) में सूचना आवेदक की मृत्यु पर उसके समस्त आरटीआई आवेदनों पर सूचना दिलाने की कार्यवाहियां रोक देने की असंवैधानिक व्यवस्था कर देने के चलते अब ऊंची पंहुच बाले और रसूखदार लोकसेवकों के भ्रष्टाचार के मामलों की सूचना मांगे जाने पर आरटीआई आवेदकों की सीधे-सीधे हत्याएं की जायेंगी.


उर्वशी ने बताया कि उनका संगठन साल 2011 से ही ‘सूचना का अधिकार बचाओ उत्तर प्रदेश अभियान’( यूपीसीपीआरआई )  के माध्यम से यूपी में आरटीआई एक्ट और आरटीआई आवेदकों के हित संरक्षित रखने के मुद्दों पर कार्य कर रहा है और आरटीआई आवेदकों की हत्याएं रोकने के एक उपाय के तौर पर आरटीआई आवेदकों की हत्याओं के मामलों में उनके द्वारा माँगी गयी सूचनाएं सम्बंधित विभाग और सूचना आयोग की वेबसाइट पर अपलोड कराने की मांग उठाता रहा है किन्तु अब इस नियमावली के नियम 13(3) के लागू होने से आरटीआई आवेदकों की जान को गंभीर खतरा उत्पन्न होने के मद्देनज़र ही इसका पुरजोर विरोध किया जा रहा है.


उर्वशी ने नियमावली के नियम 12 में जनसूचना अधिकारी के आवेदन पर भी आयुक्त द्वारा अपने आदेश को बापस लिए जाने  और नियम 9(1) में  आरटीआई आवेदकों को आयोग में जबरन समन करने की व्यवस्था को गैर-कानूनी बताया तो वहीं नियम 10 में जनसूचना अधिकारी के आवेदन पर सुनवाई स्थगित तक करने की व्यवस्था से सूचना आयोग में भी अदालतों बाली ‘तारीख-पे-तारीख’ वाली कार्यसंस्कृति आने और भ्रष्ट जनसूचना अधिकारी-सूचना आयुक्त गठजोड़ मजबूत होने की बात कही है.  


बकौल उर्वशी इस आरटीआई नियमावली का नियम 19 यूपी में दूसरी राज्यभाषा का दर्जा प्राप्त उर्दू से भेदभाव करता है और उर्दू में किये गए आरटीआई पत्राचार के हिंदी या अंग्रेजी ट्रांसलेशन को जमा करने को बाध्यकारी बनाता है. सूबे के मुखिया अखिलेश  यादव पर तंज कसते हुए उर्वशी ने कहा कि उन्हें यकीन नहीं हो रहा है कि उर्दू से यह भेदभाव उस सूबे में हो रहा है जहाँ के मुखिया अपने उर्दू प्रेम को देश-विदेश में जब तब जाहिर करते रहते हैं.


उर्वशी ने बताया कि उन्होंने सूबे के राज्यपाल राम नाइक को पत्र के माध्यम से इस नियमावली पर नियमवार आपत्तियां भेजकर इस नयी आरटीआई नियमावली को जनविरोधी बताते हुए नियमावली के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की गुहार लगाई है.


उर्वशी ने बताया कि सूबे के राज्यपाल राम नाइक ने आने बाले 11 जनवरी को उनके संगठन के 5 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल को आरटीआई आवेदकों की हत्या के बाद मुआवजा दिए जाने में भेद-भाव, सूचना आयुक्तों की अक्षमता और सूचना आयुक्तों द्वारा आयोग की सुनवाइयों में आरटीआई आवेदकों के उत्पीडन पर बातचीत के लिए राजभवन बुलाया है. उर्वशी ने कहा कि अब वे 11 जनवरी को राज्यपाल से मिलने पर उनसे नयी आरटीआई नियमावली पर रोक लगाने के मुद्दे पर भी वार्ता कर ज्ञापन सौपेंगी.


उर्वशी ने बताया कि उन्होंने देश भर के आरटीआई कार्यकर्ताओं और सामाजिक संगठनों से  संपर्क कर इस नियमावली पर विरोध करने की येश्वर्याज की मुहिम से जुड़ने को समर्थन माँगा है और 11 जनवरी को राज्यपाल से मिलने के बाद इस मुद्दे को धरना,प्रदर्शन के माध्यम से सड़क और पीआइएल के माध्यम से न्यायालय ले जाने की रणनीति बनाने की बात कही है.  

नियमावली वेबलिंक https://www.docdroid.net/kfmuE5e/up-rti-rules-2015.pdf.html  पर उपलब्ध है और यहाँ से डाउनलोड की जा सकती है.  







  

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