Thursday 28 June, 2012

उत्तर प्रदेश के दागी महाभ्रष्ट मिश्री लाल पासवान

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मायाराज में सत्ता का खेल दागी पास बाकी फेल

Tags: उत्तर प्रदेश , मायावती

Published by: Ashish Sharma
Published on: Mon, 15 Aug 2011 at 18:30 IST

F Prev Next L लखनऊ. उत्तर प्रदेश की सत्ता हाथ आते ही मुख्यमंत्री माया
ने 19 मई 2007 को अपनी पहली समीक्षा बैठक में निर्देश दिए थे कि दागी
अफसरों को महत्वपूर्ण पद कतई न दिए जाएं | लेकिन हुआ ठीक उल्टा,
वर्त्तमान में करीब सभी महत्वपूर्ण पदों पर सरकार ने एक से बढ़ कर एक
भ्रष्ट अफसरों की ताजपोशी की| भ्रष्टों के खिलाफ करवाई के नाटक में भी
मायावती सरकार काफी चतुर है|

मुख्यमंत्री के आदेशों पर सतकर्ता विभाग ने भ्रष्ट आईएएस तुलसी गौड़ के
खिलाफ दो एफआईआर दर्ज करवाई है जबकि अपने सबसे खास दागी प्रमुख सचिव गृह
कुंवर फतेहबहादुर प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री नेतराम, आबकारी आयुक्त महेश
कुमार गुप्ता जैसे तमाम महाभ्रष्ट अधिकारियो के खिलाफ सीबीआई से लेकर
सतर्कता विभाग तक की जांचों को आगे बढ़ने से रोक रखा है| जिस तरह भ्रष्ट
आईएएस तुलसी गौड़ के सेवानिवृत्त के छः माह पहले सरकार जागी है, उसी तर्ज
पर बाकी भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ भी क्या उसी अंदाज़ में करवाई होगी|

आईएएस तुलसी गौड़ के खिलाफ मुख्यमंत्री के आदेश पर सतर्कता अफसरों ने
उनके खिलाफ 2001 में विदेश यात्रा भत्ते में घोटाला तथा केंद्र की
पर्रियोजना की धनराशी का गबन करने की दो एफआईआर दर्ज कराई है| जबकि इसी
वर्ष मायावती के बेहद खास दागी प्रमुख सचिव गृह, नियुक्ति कुंवर
फतेहबहादुर सिंह व प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री नेतराम भी करीब तीन सौ करोड़
के भूमि घोटाले की सतर्कता जाँच में फसे हैं| लेकिन माया ने मुकदमा चलने
की अनुमति नहीं दी|

आबकारी आयुक्त महेश कुमार गुप्ता तो सूचना विभाग में हुए भर्ती घोटाले
में सीबीआई से चार्टशीटेड हैं . जो की वर्तमान में जमानत पर चल रहें हैं
| लेकिन सरकार ने पहले इस भ्रष्ट अफसर को गृह सचिव व बाद में आबकारी
आयुक्त पद पर न सिर्फ सुशोभित किया बल्कि सीबीआई को मुकदमा चलाने की
अनुमति देने से भी मना कर दिया | भ्रष्ट अफसरों को बचने का सिलसिला जारी
रखते हुए मुख्यमंत्री मायावती ने प्रमुख सचिव वन चंचल तिवारी व केंद्रीय
विदेश मंत्री की निजी सचिव के धनलक्ष्मी पर भी करीब साढ़े चार हजार करोड़
के ट्रोनिका सिटी घोटाले में एसआईटी जाँच में दोषी साबित होने के बावजूद
करवाई (अभियोजन मंजूरी) आगे बढ़ने से पूरी तरह रोक दी |

फ़िलहाल हम आप को बता दें कि - कुछ इसी तर्ज पर भ्रष्ट्राचारियों को
बचाने की परंपरा के तहत मैनपुरी में करीब 19 करोड़ के मिड डे मील में
सीबीआई की प्रारंभिक जाँच में दोषी आईएएस सच्चिदानंद दुबे, दिनेश चंद्र
शुक्ला, मिनिस्ती एस व तत्कालीन सीडीओ ह्रदय शंकर चतुर्वेदी, जीतेन्द्र
बहादुर सिंह को मलाईदार पदों से नवाजा जा रहा है | आईएएस सच्चिदानंद दुबे
को तो विशेष सचिव लघु उद्योग से स्थानांतरित करके डीएम देवरिया बना दिया
गया जिससे लूट घसोट का सिलसिला जारी रहे |

आईएएस राजन शुक्ला , सत्यजीत ठाकुर, कैप्टन एस. के. द्विवेदी, मिश्री लाल
पासवान, चन्द्रिका प्रसाद तिवारी के सिर पर भी तमाम घोटालों के ताज हैं |
लेकिन मुख्यमंत्री मायावती ने घपलों के बेताज बादशाह इन भ्रष्ट अफसरों के
खिलाफ चल रही जांचों व कार्यवाही को रद्दी की टोकरी में डाल रखा है |

अभी तक हम ने आप को उत्तर प्रदेश के भ्रष्ट्राचार शिरोमणि आईएएस के बारे
में तमाम जानकारिया दी लेकिन मजेदार बात तो ये है कि यहाँ के पीसीएस अफसर
भी भ्रष्ट्राचार के तालाब में किसी से कम नहीं हैं | उदहारण के तौर पर
करीब 1154 करोड़ की सीबीआई जांच के घेरे में चल रहे दागी आईएएस विजय शंकर
पाण्डेय के भाई हरिशंकर पाण्डेय को लिया जा सकता है | उद्यान विभाग के
निदेशक रहते हुए पाण्डेय ने अरबों रुपयों को हजम किया और डकार भी नहीं ली
और आईएएस चन्द्रिका प्रसाद तिवारी के साथ हरि शंकर पाण्डेय व अन्य अफसर
उद्यान विभाग में चल रही दो हज़ार करोड़ के घोटाले सतर्कता जांच में फसे
हैं |

इसी तरह मायावती सरकार में एक से बढ़कर एक भ्रष्ट आईएएस- पीसीएस अफसरों
की लम्बी फेहरिस्त है. लेकिन शायद मुख्यमंत्री मायावती को इन
भ्रष्ट्राचारियों के सहारे सरकार चलाना कुछ अधिक ही पसंद है तभी मायावती
को भ्रष्टों के खिलाफ कार्यवाई करना पसंद नहीं | वर्तमान माया सरकार के
लिए तो एक नया मुहावरा बन गया है आईएएस नम्बरी तो यूपी के पीसीएस दस
नम्बरी | Email It

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http://inextlive.jagran.com/fraud-in-polytechnic-201205070032

घोटाले की (Poly) technic May 07, 09:04 PM
यहां कम्प्यूटर ट्रेड नहीं है लेकिन ढेर सारे कम्प्यूटर खरीद लिए गए, जो
दो साल बाद भी चालू नहीं हो सके और जो इक्यूपमेंट जरूरी थे वो खरीदे नहीं
गए, पांच महीने से पढ़ाई नही हुई, वर्कशॉप में कबाड़ भरा हुआ है. ये हाल
है राजकीय गोविंद वल्लभ पंत पॉलीटेक्निक का. यंगस्टर्स आए तो थे अपना
करियर बनाने लेकिन यहां तो उनका करयिर घोटाले की धूल में दबता नजर आ रहा
है. जांच में करोड़ों घोटाला उजागर हुआ है लेकिन दोषियों को सजा से क्या
उन स्टूडेंट्स के करयिर की भरपाई हो पाएगी?


Lucknow: राजकीय गोविंद वल्लभ पंत पॉलीटेक्निक में कम्प्यूटर ट्रेड नहीं
हैं. इसके बावजूद 70 कम्प्यूटर खरीद लिए गए. लाखों रुपए के कम्प्यूटरों
पर कोई काम करने वाला ही नहीं है. वाटर कूलर भी खरीदे गए, लेकिन दो साल
में वह आज तक नहीं चालू हो सके. दो साल पहले 1 करोड़ 16 लाख 40 हजार रुपए
का बजट तो स्वीकार हो गया, लेकिन तब से आज तक न तो पॉलीटेक्निक में कोई
मशीन खरीदी गई और न ही उपकरण. पुरानी मशीनों पर ही यहां के स्टूडेंट
वर्कशॉप में काम कर रहे हैं.
स्टूडेंट्स की सहूलियत के नाम पर यहां 160 पंखे भी लगाए जाने थे, लेकिन
वह भी नहीं लग सके. यहां पढऩे वाले 360 स्टूडेंट्स के करयिर घोटाले की
धूल मेंं गुम होता नजर आ रहा है क्योंकि खरीद-फरोख्त के नाम पर यहां
करोड़ों रुपए का घोटाला उजागर हुआ है.
दो साल में नहीं खरीदी मशीन
एससी, एसटी और बैकवर्ड क्लास को टेक्निकल एजूकेशन देने के लिए मोहान रोड
पर राजकीय गोविंद वल्लभ पंत पॉलीटेक्निक की स्थापना 1965 में हुई थी. यह
समाज कल्याण विभाग की ओर से संचालित है. संस्था में एससी, एसटी के 70
प्रतिशत, अन्य पिछड़े वर्ग के 27 प्रतिशत और सामान्य वर्ग के 3 प्रतिशत
स्टूडेंट एजूकेशन लेते हैं.
वर्ष 2009 में प्राविधिक शिक्षा विभाग की उच्चस्तरीय तकनीकी समिति एवं
संस्था के टेक्निकल स्टाफ की ओर से संस्था की लैब और वर्कशॉप के सामान
आदि की खरीद के लिए एक प्रपोजल यूपी गवर्नमेंट को भेजा गया था. सरकार ने
इसके लिए 1 करोड़ 16 लाख 40 हजार रुपए का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. शासन
ने समाज कल्याण विभाग के निदेशक मिश्री लाल पासवान की अध्यक्षता में एक
समिति का गठन किया.
प्राविधिक शिक्षा परिषद के सचिव सुरेन्द्र प्रसाद, समाज कल्याण निर्माण
निगम के अधिशासी अभियंता राजीव सिन्हा, तत्कालीन पॉलीटेक्निक के
प्रिंंिसपल समिति के मेम्बर थे. समिति को शासन से अनुमोदित सूची के
अनुसार मशीन, नवीन उपकरण आदि खरीदने थे, लेकिन समिति ने मनमाने तरीके से
पैसा उड़ाया.
फेल हुआ एजूकेशन सिस्टम
सूची के मुताबिक जो खरीद की जानी थी वह नहीं की गई. दो साल बीतने के बाद
भी कोई भी मशीन और उपकरण नहीं खरीदा गया. पॉलीटेक्निक में शैक्षिक सत्र
जुलाई से शुरू होता है. लेकिन पिछले पांच महीने में यहां का एजूकेशन
सिस्टम फेल हो चुका है. इन सभी अनियमितताओं की शिकायत आरटीआई एक्टिविस्ट
उर्वशी शर्मा ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से इस संबंध में कम्प्लेन भी की
थी. समाज कल्याण के उपनिदेशक सरोज प्रसाद ने यहां का निरीक्षण किया और
अपनी रिपोर्ट में इसका हवाला दिया.
खरीदे दूसरे उपकरण
निरीक्षण में यह पाया गया कि संस्था की लैब और वर्कशॉप को आधुनिक रूप से
सुसज्जित करने और नए उपकरण/ मशीन क्रय करने के लिए 164 लाख रुपए का
प्रपोजल भेजा गया था. जिससे 116.40 लाख रुपए की धनराशि वर्ष 2009 में
संस्था को एलॉट की गई लेकिन इस एमाउंट का व्यय वर्कशॉप के उच्चीकरण एवं
मशीन/ उपकरण के क्रय करने पर नहीं किया गया और प्रस्ताव के अलावा दूसरे
उपकरण खरीद लिए गए.
ऐसे हुआ पैसे का दुरुपयोग
वाटर कूलर-संस्था ने 6 वाटर कूलर खरीदे गए और जब से खरीदे गए वह काम ही
नहीं कर रहे हैं. उसकी क्वालिटी खराब है. वह किस ब्रांड के हैं और किस
कंपनी के, यह भी पता नहीं चल सका.
कम्प्यूटर- संस्था में एचपी कंपनी के श्रीटॉन इंडिया लिमिटेड से 70
कम्प्यूटर खरीदे गए. जब निरीक्षण किया गया तो 12 कम्प्यूटर के साथ यूपीएस
ही नहीं थे. हैरत की बात तो यह है कि संस्था में कम्प्यूटर ट्रेड भी नहीं
है. इसके बावजूद इतनी बड़ी संख्या में कम्प्यूटर खरीद कर कम्प्यूटर लैब
बना दी गई. यह सामान खरीदने की वजह से वर्कशॉप और लैब की स्थिति जीर्ण
है.
कैमेस्ट्री लैब- इस लैब के लिए न तो कोई सामग्री और ना ही उपकरण खरीदे गए
और न ही लैब की फाउंडेशन की मरम्मत कराई गई. यहां की लैब की हालत इतनी
खराब है कि यहां कभी भी हादसा हो सकता है. आश्चर्य की बात है कि ऐसी हालत
होने के बाद भी 2009 से अब तक इसकी रिपेयरिंग नहीं कराई गई.
पैटर्न वर्कशॉप- पैटर्न वर्कशॉप में कोई भी मशीन और उपकरण नहीं खरीदे गए.
फिटिंग शॉप में भी कोई मरम्मत नहीं कराई गई.
फांउड्री वर्कशॉप- फाउण्ड्री वर्कशॉप में रा मैटेरियल उपलब्ध कराया गया,
लेकिन वर्कशॉप की रिपेयरिंग नहीं कराई गई. वर्कशॉप की दीवारें अत्यंत
जर्जर हो चुकी हैं. दीवारें भी बहुत गंदी हैं. वर्कशॉप में पानी टपकने से
सीलन आ गई है.
मशीन वर्कशॉप- इसमें 5 मशीनें खरीदी गई हैं, लेकिन उनका इंस्टालेशन अभी
तक नहीं कराया गया है. इसकी वजह से मशीनें बेकार पड़ी हैं.
हाइड्रोलिक्स वर्कशॉप- इसकी स्थिति भी ठीक नहीं है.
विद्युत वर्कशॉप- यहां दीवारें बहुत गंदी हैं. बारिश में कई जगह से पानी टपकता है.
जांच में सामने आया सच
समाज कल्याण विभाग के उपनिदेशक सरोज प्रसाद ने अपनी जांच रिपोर्ट में
उल्लेख किया है कि 116.40 लाख रुपए की आवंटित धनराशि से प्रस्तावित
कार्य, मशीन और उपकरण नहीं खरीदे गए. इस संबंध में कई बार तत्कालीन
प्रधानाचार्य से पूछताछ की गई. उन्होंने बताया कि संबंधित सामान, मशीन और
उपकरण खरीदे जा रहे हैं लेकिन स्थिति अभी भी गंभीर है.
संस्थान के सभी भवनों की मरम्मत, रंगाई-पुताई, बिजली मेंटीनेंस और
संस्थान में वाटर सप्लाई के लिए नए ट्यूबवेल और टंकी के निर्माण के लिए
विभाग ने उप्र समाज कल्याण निर्माण निगम को करीब 13 करोड़ की धनराशि दी
गई, उसका भी सही उपयोग नहीं किया गया. ज्यादातर काम अधूरे ही हैं. इसके
अलावा पानी की टंकी मं लीकेज और वाटर सप्लाई लाइन में जगह-जगह लीकेज की
समस्या पाई गई.
नहीं लगे पंखे
संस्थान के अम्बेडकर हॉस्टल में 160 छत के पंखे लगने थे लेकिन भी पंखा
निर्माण निगम ने नहीं लगवाया. यहां केवल पुराने 16 पंखे ही लगे हैं और
हॉस्टल सुपरिटेंडेंट ने बताया कि 15 पंखे चोरी हो गए हैं. समाज कल्याण
विभाग के उपनिदेशक ने इसके प्रामाणिक सत्यापन के लिए एक समिति का गठन
करने के निर्देश दिए हैं.
जिसमें सिविल, मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के सदस्यों को शामिल
किया जाए और 2009 में प्राप्त एमाउंट से खरीदी गई मशीनें, उपकरण और समाज
कल्याण निर्माण निगम द्वारा कराए गए कार्यों का सत्यापन समिति से कराए
जाने के निर्देश दिए हैं. उन्होंने आशंका व्यक्त की है कि संस्था के
प्रस्ताव के मुताबिक खरीद-फरोख्त नहीं की गई है और 116.40 लाख रुपए की
धनराशि का जमकर दुरुपयोग किया गया है.

Reported By : Ritesh dwivedi


Tags: lucknow polytechnic, crime, local news, lucknow
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सीबीआई जाँच के बाद भी मलाईदार ओहदे
अनिल के. अंकुर राज्य मुख्यालय First Published:19-02-11 12:43 AM
Last Updated:19-02-11 01:13 AM

ई-मेल प्रिंट टिप्पणियॉ: (0) अ+ अ-
प्रदेश की राजधानी लखनऊ में जमीन का घोटाला करने वाले सीबीआई जांच में
दोषी पाए जाने के बाद भी निश्चिंत घूम रहे हैं। उन पर कार्रवाई तो नहीं
की गई उल्टे वे अच्छी मलाईदार पद जरूर पा रहे हैं। इनमें पीसीएस,
इंजीनियर और लखनऊ विकास प्राधिकरण के इंजीनियर व अन्य कर्मचारी-अधिकारी
शामिल हैं।

सीबीआई की वर्ष 2009 की जाँच रिपोर्ट ठंडे बस्ते में डाल दी गई। कई
अधिकारी बिना दंड पाए रिटायर हो गए और कई आज भी दूसरे स्थानों पर अहम
पदों पर तैनात हैं। सीबीआई ने यह जांच जानकीपुरम घोटाला मामले में की थी।

गरीबों के लिए बनाए गए भवनों की गुणवत्ता खराब होने व कई मकानों के बनने
से पहले ही खंडहर में तब्दील होने के मामले में सीबीआई ने जिन पर मुकदमा
चलाने के लिए कहा था उनमें तत्कालीन संयुक्त सचिव आरएन सिंह, कार्यालय
अधीक्षक भूपेन्द्र नाथ, एमएस सेंगर, दिवाकर सिंह, उषा सिंह और राजीव सिंह
शामिल हैं।

इनमें संयुक्त सचिव आदलत से स्थगनादेश ले आए थे और अब रिटायर हो गए हैं।
कार्यालय अधीक्षक का निधन हो चुका है। इनके अलावा एक दजर्न ऐसे अधिकारी
और कर्मचारी हैं जिनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही की अनुसंशा की गई थी।
इनमें पीसीएस अधिकारी मिश्री लाल पासवान भी शामिल हैं। वे तत्कालीन
संयुक्त सचिव थे।

आवास विभाग ने इनके खिलाफ कार्रवाई के लिए नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग
उत्तर प्रदेश सरकार भेज दिया था। वे फिलहाल अपर आवास आयुक्त और समाज
कल्याण निदेशक जैसे महत्वपूर्ण ओहदे पर हैं। एक अन्य तत्कालीन संयुक्त
सचिव शशी भूषण रिटायर हो चुके हैं। उनके खिलाफ भी कार्रवाई नहीं हुई।

आवास विभाग ने नगर विकास विभाग को लिखा था कि भूषण निकाय सेवा के
कर्मचारी हैं इसलिए कार्रवाई उन्हीं का मूल विभाग करेगा। एक और दोषी
अधिशासी अभियंता केके पांडेय लगातार प्रमोशन पाते हुए खास पदों पर रहे और
पिछले महीने रिटायर भी हो गए। विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की।

सहायक सम्पत्ति अधिकारी वीके श्रीवास्तव के खिलाफ भी कार्रवाई होनी बाकी
है। अंडर सेक्रेटरी राम प्रकाश सिंह ने नौकरी ही छोड़ दी। क्लर्क सुरेश
वर्मा, अवर अभियंता ओम प्रकाश पांडेय, अवर अभियंता एके जौहरी और करीब चार
लिपिक शामिल हैं। आवास विभाग के अधिकारी कहते हैं कि उन्होंने विभागीय
कार्रवाई के लिए सम्बन्धित विभागों को लिख दिया था।

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http://in.jagran.yahoo.com/epaper/article/index.php?page=article&choice=print_article&location=37&category=&articleid=111710736780466184

एलडीए के पूर्व संयुक्त सचिव गिरफ्तार


लखनऊ, 5 मई (जासं): भूखंड आवंटन में गड़बड़ी और भ्रष्टाचार के तीन मामलों
में लिप्त पाए गए सेवानिवृत्त पीसीएस अधिकारी व लखनऊ विकास प्राधिकरण के
पूर्व संयुक्त सचिव श्रीपाल वर्मा को गुरुवार सुबह सतर्कता अधिष्ठान की
टीम ने गिरफ्तार किया है। श्री वर्मा पूर्व सांसद पूर्णिमा वर्मा के पति
हैं। अदालत ने श्री वर्मा को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया
है। शासन ने इस घोटाले की जांच के आदेश 18 नंवबर 1997 में दिए थे और
सतर्कता विभाग की टीम ने वर्ष 1998 में कैसरबाग कोतवाली में भूखंड
घोटालों व सरकारी धन का गबन करने के संबंध में धोखाधड़ी के तीन मुकदमे
दर्ज कराए गए थे। श्रीपाल वर्मा, तत्कालीन संयुक्त सचिव और वर्तमान में
निदेशक समाज कल्याण मिश्रीलाल पासवान समेत अभियंताओं व कर्मचारियों पर
आरोप था कि उन लोगों ने सीतापुर रोड योजना सेक्टर-सी में पार्क की जमीन
पर बिना प्राधिकरण बोर्ड व शासन की अनुमति के भूखंड आवंटित कर दिए थे। 15
भूखंडों की रजिस्ट्री कर दी गई थी, लेकिन नक्शा व्यावसायिक श्रेणी के लिए
पास किया गया था। वर्ष 1987 से 1992 के मध्य फर्जी दस्तावेजों व कूटरचना
कर उक्त भूखंडों का आवंटन किया था, जबकि योजना के मूल आवंटियों ने पार्क
के सामने भूखंड पाने के लिए अतिरिक्त चार्ज प्राधिकरण में दिया था। जांच
में श्रीपाल वर्मा तीनों मामलों में दोषी पाए गए। सतर्कता अधिष्ठान, लखनऊ
सेक्टर की पुलिस अधीक्षक दीपिका गर्ग के निर्देश पर गुरुवार को सतर्कता
विभाग के निरीक्षक आरडी यादव व सिपाही इश्तियाक खां ने अलीगंज स्थित
पूर्व संयुक्त सचिव श्रीपाल वर्मा के आवास से उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
सतर्कता निरीक्षक आरडी यादव ने बताया कि 13 आरोपियों में नौ को दोषी पाया
गया था। इसमे संयुक्त सचिव से लेकर अभियंता व लिपिक भी हैं। दो को छोड़कर
शेष का मामला अदालत में विचाराधीन था। श्री वर्मा की गिरफ्तारी के बाद
तत्कालीन संयुक्त सचिव व वर्तमान में निदेशक समाज कल्याण के पद पर तैनात
मिश्रीलाल पासवान की गिरफ्तारी के लिए शासन को पत्र भेजा गया है। उधर,
अदालत ने मामले की सुनवाई के लिए 7 मई की तिथि नियत की है।
निजता नीति | सेवा की शर्तें | आपके सुझाव

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